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________________ 8... गंधोदकधारा छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में नगण (1) होता है। चारुपद छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु (s) व लघु (1) होता है। 10. मालती छन्द - लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दो जगण (IsI+II) व 6 वर्ण होते हैं। 11. दोधक छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में तीन भगण (si+s||+SII) और दो (s+s) व 11 वर्ण होते हैं। 1. 2. अभ्यास (ख) गाहा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं। खंडयं छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण (sis) होता है। वदनक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु (।।) होती हैं। करमकरभुजा छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु-गुरु (। 5) होते हैं। 3. 48 अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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