Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 54
________________ 5. 6. 7. आगमहिं / आगमाहिं (2/27/ 2) जाणि / जाणिउ / जाणिवि / जाणवि / सच्च / सच्चा/ सच्चु ( 1/1 ) कहिअ / कहिआ / कहिउ । नियम 3 है। द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति भी हो जाती अणुचरहिं/अणुचराहिं (3/27/ 2) सह संभासि / संभासिउ / संभासिवि / संभासवि / संभासेप्पि/संभासेप्पिणु / संभासेवि / संभासेविणु (संकृ) सो (1 / 1) गच्छिअ/गच्छिआ /गच्छिउ /गच्छिओ। नियम 3 - तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति भी हो जाती है। विसइ / विसए ( 5 / 1 - 7 / 1 ) विरत्तचित्त / विरत्तचित्ता / विरत्तचित्तु / विरत्तचित्तो (1 / 1 ) जोइ / जोई हवइ/हवेइ/हवए। नियम 3 - पंचमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी सप्तमी विभक्ति होती है। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only * 135 43 www.jainelibrary.org

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