Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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चतुर्थी विभक्तिः सम्प्रदान कारक
. अभ्यास 3 1. सो (1/1) पुत्ती/पुत्ति/पुत्तीहे/पुत्तिहे (4/1) धण/धणा/धणु (2/1)
देइ। नियम 1- दान कार्य के द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, उस व्यक्ति की सम्प्रदान कारक संज्ञा होती है। सम्प्रदान को बताने वाले संज्ञापद को चतुर्थी विभक्ति में रखा जाता है। सो (1/1) धण/धणा/धणसु/धणासु/धणहो/धणाही/धणस्सु (4/1) चे?इ/चे?इ/चेट्टए। नियम 2- जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य होता है, उस प्रयोजन में
चतुर्थी विभक्ति होती है। 3. हरि/हरी (4/1) भत्ति/भत्ती (1/1) रोअइ/रोएइ/रोअए।
नियम 3- रोअ (अच्छा लगना) तथा रोअ के समान अर्थ वाली अन्य क्रियाओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान कहलाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। नरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो (1/1) मंति/मंती (4/1) कुज्झइ/कुज्झेइ/ कुज्झए। नियम 4- कुज्झ (क्रोध करना), क्रिया के योग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। मंति/मंती (1/1) नरिंद/नरिंदा (2/1) अथवा नरिंद/नरिंदा/नरिंदसु/
नरिंदासु/नरिंदहो/नरिंदाहो/नरिंदस्सु (4/1) णमइ/णमेइ/णमए। ... नियम 5- ‘णम' क्रिया के योग में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति दोनों
होती हैं। 6: धन्न/धन्ना/धन्नु (1/1) भोयण/भोयणा/भोयणसु/भोयणासु/
भोयणहो/भोयणाहो/भोयणस्सु (4/1) अलं अत्थि। .. नियम 6- अलं (पर्याप्त) के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। 7. सो (1/1) मुत्ति/मुत्ती/मुत्तिहे/मुत्तीहे (4/1) सिहइ/सिहेइ/सिहए।
नियम 7- सिह (चाहना) क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। . अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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