Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ 8. बप्प/बप्पा/बप्पु/बप्पो (1/1) पुत्तेण/पुत्तेणं/पुत्ते (3/1) समं खेलइ/. खेलेइ/खेलए। नियम 5- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जल/जला/जलु (2/1) अथवा जलेण/जलेणं/जलें (3/1) अथवा जलहे/जलाहे/जलह/जलाह (5/1) विणा कमल/कमला/कमलु (1/1) न विअसइ/विअसेइ/विअसए। नियम 6- 'विणा' शब्द के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। सो (1/1) नरिंदेण/नरिदेणं/नरिंदें (3/1) नरिंद/नरिंदा/नरिंदसु/ नरिंदासु/नरिंदहो/नरिंदाहो/नरिंदस्सु (6/1) तुल्ल/तुल्ला/तुल्लु/ तुल्लो अत्थि। नियम 7- तुल्य (समान, बराबर) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया अथवा षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1/1) कण्णेण/कण्णेणं/कण्णे (3/1) बहिर/बहिरा/बहिरु/ बहिरो (1/1) अत्थि। नियम 8- शरीर के विकृत अंग को बताने के लिए तृतीया विभक्ति होती 10. 11. 13. सो (1/1) णेहेण/णेहेणं/णेहें (3/1) घर/घरा/घरु (2/1) आवइ/ आवेइ/आवए। नियम 9- क्रियाविशेषण शब्दों में भी तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। सीलि/सीले (7/1) णट्ठि/ण? (7/1) उच्चेण कुलेण (3/1) किं? नियम 11- किं, कज्जु, अत्थो इसी प्रकार प्रयोजन प्रकट करनेवाले शब्दों के योग में आवश्यक वस्तु को तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। ईसरहं/ईसराहं (6/2) कज्ज/कज्जा/कज्जु (1/1) तिणेण/तिणेणं/ तिणें (3/1) वि हवइ/हवेइ/हवए। नियम 11- किं, कज्जु, अत्थो इसी प्रकार प्रयोजन प्रकट करनेवाले शब्दों के योग में आवश्यक वस्तु को तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। 14. 36 अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72