Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 44
________________ 6. 7. 8. 9. 10. 11. सो (1/1) तं (5/12/1 ) धण / धणा / धणु ( 2 / 1 ) मग्गइ / मग्गेइ / मग्गए । नियम 2 - अपादान 5/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। तुहुं (1 / 1 ) अग्गि / अग्गी ( 3 / 1-2 / 1 ) भोयण / भोयणा / भोयणु ( 2 / 1 ) पचि/पचे/पचु/पच/पचहि/पचेहि/पचसु/पचेसु । नियम 2 - करण 3 / 1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति । नरिंद / नरिंदा / नरिंद्र / नरिंदो (1/1) मंति/मंती (2/1) णयर / णयरा / जयरु (7/12/1 ) वहइ / वहेइ / वहए अथवा णीणइ / णीणेइ/णीणए । नियम 2 - अधिकरण 7 / 1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति । हउं (1/1) देवउल / देवउला / देवउलु (2 / 1 ) गच्छउं / गच्छमि / गच्छामि / गच्छेमि । नियम 3 - सभी गंत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। सो (1 / 1 ) रत्ति / रत्ती ( 7/12/1 ) मित्त/मित्ता / मित्तु ( 2 / 1 ) सुमर / सुमरे / सुमरए । नियम 4 - सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। सुअण/सुअणा/सुअणसु/सुअणासु/सुअणहो/सुअणाहो / सुअणस्सु (6/1) विज्जुप्फुरिय/ विज्जुप्फुरिया ( 1 / 1-2 / 1 ) कोह / कोहा/कोहु/कोहो (1 / 1 ) हवइ / हवेइ / हवए । नियम 5- प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। 12. देव / देवा (1/2) सग्ग / सग्गा / सग्गु ( 2 / 1 ) उववसहिं / उववसन्ति / उववसन्ते/उववसिरे अथवा अनुवसहिं अथवा अहिवसहिं अथवा आवसहिं/आदि। नियम 6- यदि वस क्रिया के पूर्व उव, अनु, अहि और आ में से कोई भी उपसर्ग हो तो क्रिया के आधार में द्वितीया होती है। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only 33 www.jainelibrary.org

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