Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 02 Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय भारतीय सस्कृति अपने भीतर अनेक धर्मों को समाहित करने वाली है। अनेक धर्म, अनेक सम्प्रदाय, अनेक जातियो के मध्य जैन धर्म का विशिष्ट एव प्रभावशाली स्थान है। जैन धर्म अनादिकाल से करुणा, दया, वात्सल्य, स्नेह का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी धारा को निर्मल एव पवित्र बनाकर प्रवाहित कर रहा है। जैन धर्म मे अनेक सम्प्रदायो के मध्य श्री साधुमार्गी जैन सघ का विशिष्ट स्थान है। श्री साधुमार्गी जैन सघ को इतिहास के स्तर पर आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से लेकर चरम तीर्थकर भगवान महावीर से जोड़ा जा सकता है। इन सभी तीर्थकरो ने अपने समय मे विशुद्ध धर्म अर्थात् समता धर्म, शुद्ध आत्मधर्म, अहिसा, सयम, तप, वीतराग धर्म का प्रवर्तन किया और तत्कालीन युग में व्याप्त विकृतियो और विषमता के खिलाफ विचार और आचार दोनो स्तरो पर क्रान्ति कर सच्ची साधुता, सज्जनता, सात्विकता का मार्ग प्रशस्त किया। उसी परम्परा की विचार ऊर्जा और आचारनिष्ठा को अपने में समाहित किये हुए श्री साधुमार्गी जैन सघ आज भी जीवन्त है। वर्तमान मे शास्त्रज्ञ, तरुण तपस्वी, प्रशान्तमना श्रमण विभूति सयम सरोवर के राजहस कोहिनूर दीप्ति मणी आचार्य-प्रवर 1008 श्री रामलालजी म सा अपनी अद्भुत प्रतिभा और प्रखर मेघा के साथ सघ का कुशल नेतृत्व कर रहे हैं। जिनके प्रवचनो मे जवाहराचार्य की झलक, अनुशासन मे गणेशाचार्य की झलक एव जिनके जीवन मे नानेशाचार्य की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। शास्त्रीय धरातल और आगमिक ग्रन्थो के तलस्पर्शी अध्ययन के साथ ही आचार्य श्री रामेश सयमी क्रिया के प्रति भी अत्यन्त सजग है। तिन्नाण और तारयाण पद को सार्थक करते हुए आचार्य श्री रामेश अपने साथ-साथ अपनी शिष्य मडली के शुद्धाचार हेतु सदैव सजग रहते है। अपने उज्ज्वल एव पवित्र जीवन तथा शास्त्र के दिशा-निर्देश को अपने जीवन मे ढालकर पूज्य आचार्यदेव ने जनमानस के समक्ष एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। ज्ञान ओर क्रिया के बेजोड सगम आचार्यदेव अपने श्रावक समुदाय को भी ज्ञानवान चारित्रवान एव क्रियावान बना देखना चाहते हैं। शुद्ध साध्वाचार के प्रतिबिम्ब आचार्यदेव सम्पूर्ण जनमानस के कल्याण एव उत्थान की भावना को लेकर ग्राम-ग्राम, नगर-नगर मे पदविहार करते हुए धर्म की ज्योत को प्रज्वलित कर रहे हैं। हुक्मसघ के इतिहास मे प्रथम बार उडीसा विहार, झारखण्ड की धरा को पावन करते हुए पूज्य आचार्यदेव के चरण भारत की महानगरी कोलकाता की ओर बढे । जहाँ पर जन-जन को धर्म का बोध देतेPage Navigation
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