Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2005
१॥
कांने कुंडल रवी ससी जोती मुंघ मुलांनी नाके छे मोती सोवन रेखाओ रदनें वारु विराजें तंबोल वदनें ॥२०॥ कंठे रेखा त्रण सोहि जम कंबु तांणा कंचुकसुं थणहर तंबु हिई चोसरो नवसर हार बाजुबंधन तेज अपार । जडीत चुंनडीओ झगमग झलके कटिमेखला खल खल खलके पाए नेपुर पायल वाजें जांणे भाद्रवें जलधर गाजें ॥२२॥ ठम ठम अणवट विंछुआ ठमकें घम घम घुघरी गोफणो घमके जडीत जालीमा जड्यां छे नंग हाथें अंगूठी मिंदी सुरंग ॥२३॥ मिहेंकें चंदन मृगमद पुर सोहें मुख-नुर उगतो सुर चरणा चोलीने चोसर फुले उपे अंबाजी चीर अमुलें जाइ जोवन लेंहिरिं जम गंग केसर-वरणुं छे कोमल अंग गमन करंतां गिरमां जणाई जाणे वादलमां वीजली थाई ॥२५॥ दांणव मल्या छे दातणनें काजें (में) ततखेंण त्रीपुरा जाइ तेणें ठांमें
॥२४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118