Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2005
देखी देवने दुःख उपातो मार्यो महीषासुर दाणव मातो सुरथ वैसनें वरदांन दीधुं राज्य वालु ने कारज कीg ॥७॥ हरी हर बंभ में रवी ससी जोडि सुरपति देवता तेत्रीस कोडि शुंभ दैतें ते सघळा हराव्या हार मांनीने हेमाचल आव्या ॥८॥ अंबाजि आगल्य अरज करे छे दीलमां देवता दुःख धरे छे देवी दांणव-सुभट छे दुष्ट अमनें कीधा तेंणे थांनक-भृष्ट ॥९॥ नीपनी छोंड्या सुरीनर नांग जोरें रोक्या छे जगन में जाग त्रीभोवन कंटक म्लेच्छ ए ताजो मनमां नांणे केहनो मलाजो ॥१०॥ वलती वेंमासी तव कहें इंम वेंमला कहो आपणी तजीने कमला भई दांणवनें तुमें सुं भागा इम नासीने आवी इहां लागा ॥११॥ तिहारें सुर कहें हाथ तमारें अहर्नु लख्यु छे मरण आ वारें वदी बत्रीसी वरदांन वारु देवी रचें तीहा रूप दीदारु ॥१२॥ वरसां बारांक तेराकवाली बाल कुंआरी सुदर सुखमालि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 118