Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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रोल वरत्यो ते राखसें जांण्यों तइहारि अबलानो भय मन आण्यो ||३९||
खरी मनमां वलि आंणीनें खीज रोस धरीनें रगत बीज रमणी लेवानें राखस- -राजा तरत मोकलें करी तगाजा
जुधें अंबासुं जई ते जडीओ जांणे छालीमां नाहर पडीओ दैत्य दुर्गाइं आघो ते लीधो पछें हालीइ घाउ ज कीधो
पडें रगतना बिंदु जीहां जेता थाई राखसना रूप ज तेता केता मारें ने केता संहारें करें हरसीद्धी हुकम तेहारें
लोहि लेईने घटघट पीई वळी योगणीने वेंहचीनें दीई
क्रोधें तेहनुं मस्तक काप्युं देवें बहुचरा नांम तीहां थापुं
घणा संहार्या गीर्याई हाथें संघला हुता जे तेहनें साथें रगतबीजनी नीरसो जांणीनें असुहीयामां अमरख आंणीनें
वली बीजो तीहां नीसुंभ भाइ सेना लेइनें पोहतो ते धाई जोर तेहसुं मचाव्यो जंग रणखेनो वधार्यो रंग
॥४०॥
॥४१॥
॥४२॥
॥४३॥
॥४४॥
॥४५॥
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अनुसन्धान ३२
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