Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 99
________________ 94 अनुसन्धान ३२ प्रदानमां गणतरीमा लेवा जोईओ. कारण ए के आवां कार्योमां पण डो. भायाणी, मार्गदर्शनथी पण विशेष एवं सक्रिय योगदान छे. केवळ संशोधनसम्पादनने ज जीवननां आटलां वर्षों आप्यां होय अने आट-आटलां माध्यमोथी संशोधनना जीवनधर्मने सिद्ध को होय अq बीजुं दृष्टान्त भारतमां के अन्यत्र भाग्ये ज जोवा मळशे ! आ उपरांत पण डो. भायाणी) विविध निमित्ते विविध राष्ट्रीयआन्तरराष्ट्रीय सेमिनारमा शोधपत्रो रजू काँ, विविध संस्थाओमां व्याख्यानो आप्यां, ओ निमित्ते पण संशोधनकार्य थयु. आवा शोधपत्रोनी ज संख्या बसोथी वधारे छे. आमांथी मात्र २० ज संग्रहस्थ थयां छे. शेष छे तेना संचयो प्रगट करीओ तो पांचेक भाग थई शके. डॉ. भायाणीनां शिक्षण-संशोधननी ओक लाक्षणिकता ते तेमनुं पत्रलेखन. देश-विदेशना अनेक अभ्यासीओने संशोधनमां सहाय करता आ विद्यापुरुष कोईनो शोधपत्र के पुस्तक वांचे के तरत ज संशोधनना कोई मुद्दा पर पत्र लखे. जरूरी होय एवा- अटला अंशना झेरोक्ष मोकले. आना अनुसन्धाने जे संशोधनकार्य थयु, ओ पण अहीं ध्यानमा लेवा जेवू छे. आवा पत्रोनी नकल डॉ. भायाणीओ राखी नथी, परंतु एना जे प्रत्युत्तर मळ्या, अभ्यासीओ पोतानां प्रकाशनमा सुधारा कर्या के महत्त्व- केटलुक शोधपत्र रूपे के आनुषंगिक पाठसुधाराना रूपे प्रगट थयुं ते जळवायुं छे. आवां त्रणेक दृष्टान्तः बौद्ध तान्त्रिको, दीक्षित न होय तेवा लोकोथी चर्यापदोना पाठने सुरक्षित राखवा माटे, शब्दो के अक्षरो वच्चे अश्लील शब्दो, गाळ लखता. आथी कोईना हाथमा हस्तप्रत आवे तो ते 'पीळु' मानीने तजी दे. परंतु पर काईने व्हाईट नामना विदेशी विद्वाने बेंगकोकथी ई. १९८६मां 'अन अन्थोलोजी ओफ बुद्धिस्ट तांत्रिक सोंग्स'नुं पुनःमुद्रण करी डॉ. भायाणीने मोकल्यु. अमां गाळना शब्दो कौंसमां मूकवाथी चर्यापदनो गुप्तपाठ प्रगट थतो हतो. अनी भाषा अपभ्रंश हती. डो. भायाणीले भ्रष्ट पाठने सुधार्यो अने शब्देशब्दना अर्थ बेसाड्या अने एने आधारे 'रीस्टोरेशन ओफ ध टेक्स्ट ओफ ध चरियागीतिझ' तैयार थयुं, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीमा प्रकाशित छे. आq बीजं रसप्रद संशोधन छे ते मतिसारनी कृतिमां विरहिणीओ करेलां चित्रांकननुं छे. रात वहेली गई. चन्द्र मध्य आकाशे पहोंच्यो. लांबा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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