Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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June-2005
विटलसंलाते मेहला वीगोई जावा न दीधो जीवता कोई पापी पाढा इम अंबानो परतो जगमां संघलो तव जयकार वरत्यो ॥७२॥ व्रमा आदि सहु देवता भावे स्तवे अंबाने तिणें प्रस्तावें आसा पुरें तुं संकट चरें। दुरीत दुसमननें टालें तुं दुरे ॥७३।। त्रीभोवन रह्यो छे ताहरें आधार तुठी तारें तुं रुठि संघारि जीहा जीहा पार्वती तुं पद धारें तिहारे सेवकनां काज सुधारें ॥७४।। गढ मद(ढ)ने वावि तरु गीरवर गुफाई वासें वसें तु वली जल ठाई वीश्वजननी तुं वीश्वमा व्यापी आगम ताहरो कोइ न सके उप(पा)सी ।।७५।। आसो माघ में चैत्र आसाढ़ें अरचें तुझने जे उत्तम दाडे नवरात्र में नव नव दाडा जालिम ते नर लहें सुख जो(जा)डा ।।७६।। माहाकाली माहासरसती माता माहालखमी तुं जगमां वीख्याता त्रीधा रूपें तुं संसार तारें तम्यो वरदाता विघन नीवारें ॥७७|| संवत सतर सीतेरा वरचे पोस मास सुदि आतम हरखें
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