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June-2005
मेघदूत रसिक कवियों का प्रिय काव्य रहा हैं, इसलिए इस पर पादपूर्ति साहित्य लिखकर जैन कवियों ने कवि कालिदास को अमर बना दिया है । जैन कवियों द्वारा रचित मेघदूत पादपूर्ति के रूप में निम्न काव्य प्राप्त होते हैं
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१. पार्वाभ्युदय काव्य : जिनसेनाचार्य, प्रत्येक चरण की पादपूर्ति की गई है, डॉ. के. बी. पाठक द्वारा सम्पादित होकर सन् १८९४ में प्रकाशित हुआ है ।
२. जैनमेघदूतम्: मेरुतुंगसूरि, इस पर शीलरत्नगणि महिमेरुगणि आदि की टीकाएँ भी प्राप्त है। जैन आत्मानन्द सभा भावनगर से प्रकाशित हुआ है । ३. नेमिदूतम्: विक्रमकविः उपाध्याय विनयसागर द्वारा सम्पादित होकर सन् १९५८ में दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ है ।
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४. शीलदूतम्: चारित्रसुन्दरगणि, सं. १४८४ : यशोविजय जैन ग्रन्थमाला काशी से प्रकाशित ।
५.
चन्द्रदूतम्: विमलकीर्ति, सं. १६८१ :
मेघदूतसमस्यालेखः महोपाध्याय मेघविजय, सं. १७२७: मुनि जिनविजय सम्पादित विज्ञप्ति लेख संग्रह में सन् १९६० में प्रकाशित ।
७. चेतोदूतम्:
८. हंसपादाङ्कदूतम्: श्री नाथुरामजी प्रेमीने विद्वत्नमाला के पृष्ठ ४६ में इसका उल्लेख किया है ।
६.
इनके अतिरिक्त जैनेतर कवियों में अवधूत रामयोगी रचित (सं. १४२३) सिद्धदूतम्: श्री हेमचन्द्राचार्य ग्रन्थावलि, पाटण के तृतीय ग्रन्थाङ्क के रूप में सन् १९२७ में प्रकाशित और आशुकवि पं. नित्यानन्दशास्त्री रचित हनुमद्रूतम् : वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित भी प्राप्त होते है । १
इस ग्रन्थ में रचना सम्वत् प्राप्त नहीं है, किन्तु इसके द्वितीय अर्थ में 'अस्वाधिकारप्रमत्तश' इसका अर्थ करते हुए टीकाकार ने लिखा है "साभिप्रायं उपाध्याय विनयविजयकृत इन्दु दूत और सांप्रतमें हुए स्व. आ. श्रीधर्मधुरन्धर सूरिकृत मयूरदूत भी इसी परम्परा की रचनाएं हैं ।
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