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June-2005
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ट्रॅक नोंध
२. भुवनहिताचार्य
म. विनयसागर अनुसन्धान के २५ वें अंक में भुवनहिताचार्य कृत चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् (पृष्ठ ५३ से ५८ तक) प्रकाशित हुआ था । उस लेख में भुवनहिताचार्य का जो परिचय प्राप्त है वह एक ही पैरेग्राफ में दिया गया था ।
खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह का सम्पादन करते हुए श्री भुवनहिताचार्य से सम्बन्धित एक शिलालेख प्रशस्ति दृष्टिगोचर हुई । यह प्रशस्ति राजगृह नगर में पार्श्वनाथ मन्दिर में विद्यमान है। विविध छन्दों में निर्मित प्रशस्ति वैदुष्यपूर्ण है और ३८ पद्यों में है जो ३३ पंक्तियों में टंकित हुई है। इस प्रशस्ति का सारांश निम्न है
विपुलाचल पर विराजमान पार्श्वनाथ भगवान् वाञ्छित फल प्रदान करें (१) । भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान कल्याण जहाँ हुए हैं और चक्रवर्ती जय, बलदेव राम, वासुदेव लक्ष्मण, प्रतिवासुदेव जरासन्ध, महाराजा श्रेणिक, अभयकुमार और धन्य शालिभद्र आदि से जो भूमि पवित्रित है। विपुलाचल पर और वैभारगिरि पर जिनेन्द्र मन्दिर हैं (२-३)
उस राजगृह नगर पर सुरताण पेरोजशाही का शासन चल रहा है । उनके आदेश से मगध देश पर मलिकवय नामक शासक है और उसी का सेवक सहणासदूरदीन की सहायता से मंत्रीदलीय ठक्कुर वच्छराज और ठक्कुर देवराज ने यह पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया है (५) ।
मन्त्रिदलीय वंश में मुख्य पुरुष सहजपाल हुए । उनकी विस्तृत वंश परम्परा दी गई है । पद्य ६ से १३ ॥ उसी वंश-परम्परा में ठक्कुर मण्डन के पुत्र ठक्कुर वच्छराज और देवराज ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया ।
इस मन्दिर के प्रतिष्ठापक थे - भगवान् महावीर की परम्परा में सुधर्म गणधर, वज्रस्वामी आदि पूर्वधर हुए । उसी वंश-परम्परा में वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि, उनके शिष्य जिनचन्द्रसूरि ने सम्वेगरंगशाला ग्रन्थ का निर्माण किया। उनके पट्टधर अभयदेवसूरिने स्तम्भन पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रकट
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