Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 25
________________ 20 अनुसन्धान ३२ सागी वय बालक तणी, फिर पालो आई । कहितां लागै कारिमौ, लकडी पकडाई १९॥ सु० पांच सात कोसां तणो, कदे पंथ न गणीयो ! आज समो घरि अंगणो, मोसुं जाय न मिणीय ॥१०॥ सु० गाहा दूहा गीतडा, पढतो अणपारे । हिवणां ते मुझ जीभडी, अष्यर न उचारै ।।११।। सु० सुरंभ तेल चंपेलरी, करि देतो परिष्या । हिवणां लेखै माहरइ, सहि लागै सरिखा ॥१२॥ सु० नयणे हुं नग परखतो, निरखी घरनारी । दूरी ठीक न का पडै, मिटी ज्योति करारी ॥१३।। सु० राग रंग सुणतां समो, सुरसुं कहि देतो । कान लग्यो वातां करै, तौही होय न चेतो ॥१४॥ सु० बारोडी बैठो रहुं, खिलवत सहु खोई । स्युं खास्यों स्यों ओढस्यों, युं न कहै कोई ॥१५।। सु० सेंण संबंधी आपणा, पल पलमै मिलता। सूगालो हिव देखने, ते जायै टलता ॥१६॥ सु० स्वारथी यै संसाररी, मैं पैठ न जांणी । लोभ तण वस लागर्ने, न सुणी जिनवाणी ॥१७॥ सु० गति सारै मति ऊपजै, रागादिक रोधी । कोइक पछतावो करै, वुधवंत सुबोधी ॥१८॥ सु० सुघडपणे सुलझ्यो नही, भ्रम भूलो भाई । गुलमें माखी गड रही, नीकलन न पाई ।।१९।। सु० मौडी खबर पडी मुनें, कांई हिव कीजै । कांबल अतिभारण हुई, ज्युं ज्युं जलभीजै ।।२०।। सु० पोसै पडकमणै समै, न सक्यो परवारी । घर घर हुं रुलतो फिर्यो, क्रम बांध्या भारी ॥२१।। सु० नाज तणौ धन नाजमै, व्याजै व्याज अडायो । राज कमायो राजमै, नीसरण न पायो ।।२२।। स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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