Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ 24 सुतक तणो हुं कहुं विचार, सांभलजो नर-नारी सार । जेहनें घरें जन्म थाई ते जाण, दश दिवसनो को परीमांण ॥२॥ एतलो पुत्रजन्मनों सार, पुत्री जन्में दिवस ईग्यार । मृत्यु घरनों सुतक दिन बार, ते घरें साधु न वोहरें आहार ||३|| ते घरनो जल अग्नी जांण, जिनपुजा नवी सुझे सुजाण । इंम निशीथचुर्णी माहें कह्यौ, एह तत्वारथ गुरुमुखथी लौ ||४|| निशीथ सोलमें उदेसें सार, ए महंत मुंनी कहें अणगार । जन्म तथा मरण- घर जांणों सहु, दुगंछनीक गुरुमुखथी लहुं ||५|| इंम व्यवाहर ( व्यवहार ) भाष्यमां वली, इंम भांषे सुधा साधु केवली । मलयगिरी कृत टीका जांण, दस दिवस जन्म सूतक प्रमाण || ६ || हवे सांभलजों जिनवाणी सार, इंम भांषे सुधा अणगार । विचारसार प्रकर्णे सार, इंम भांषे श्री जिन - गणधार ||७|| मास एक स्त्रीनें सार, प्रतिमा दर्शन न करें विचार | दिवस च्यालीस जिनपुजा सार, न करे स्त्री ए व्यवहार ॥८॥ साधु पिण नवी लिई आहार, तिहां सुतक कहे अणगार । तेहनां घरनां मांणस होय, जन्म-मरणनो सुतक जोय ||९|| न करे पुजा दिन बार ते जांण, समझी करजों चतुर सुजांण । मृत्युने अडकणहारा कह्या, चोवीस पोहर तें साचा कह्या ॥१०॥ वली पडिकमणांदिक न करे जांण, इंम भांषे छें त्रिभूवन भांण । वेशनां पलटणहारा कह्या, आठ पोहर तें साचा सदा ॥११॥ कांध देणहारा मृत्युनें जांण, वली अन्य ग्रंथमें जांणों सुजाण । सोल पोहर पडीकमणों नवी कह्यो, ए जिन भांख्यो आगमथी लह्यो ||१२|| जन्मनों सूतक दस दिन सार, जन्मने थानक मास विचार । घरनां गोत्रीनें दिन पांच, सुतक टालें गुरु भांषें साच ||१३|| जन्म हुआ ते ज दिनें जो मरे, वली देशांतर फरतों मरें । संन्याशी अनेरो मृत्युक होय, तो दिन एक सुतक जांणों सोय ||१४|| १. विवहार अ. ॥ २. मृतकनां वस्त्रो बदलावनारा || अनुसन्धान ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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