Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ June-2005 भद्रकाली तव कहें इणी भांति खरी.... युद्धनी खांति भडि मुझसुं जे रणमां भुपाल मोदें तेहनें ठवें वरमाल ॥३३॥ एहवो अंबाना मननो आकुत दाणव शंभने दाखें जई दुत बिठी हिमाचल उपर एक बालि रमणी रंभथी अद्धीक रूपाली ॥३४।। जुद्धे जीतें जे मुझनें जोरालो वरुं ते वर मरद मुंछालो कंन्या संग्राम करसें ते केहवो असुर मलीने विमासे एहवो ॥३५॥ पापी शुंभे तव दुत पठायो धुंम्रलोचन द्ववर (?) धायो सीहणि आगलि जम सीयाल तेंम ते हरसीद्धी हाथे लिहिं काल ॥३६।। शुंभ तेहनी ते सांभली वात चंड मूंड बें दैत वीख्यात आपें तेहनें एम आदेश कांमण्य ते लावो झालीनें केश ॥३७॥ दल लेइनें दुत ते धाया हल हल करीने हिमाचल आया भारथ तेहसुं रचीने भारी । वाघवाहनी नांखें वीदारी ॥३८।। चुर्या चंड ने मुंड में भंडा थयुं ची(च)डीनुं नाम चामुंडा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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