Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 43
________________ [38] - बहुअ वास सहु आसि दिद्धं कण्हाग-राय तिहि उत्तम उत्तम नवि सहाव मिल्हई मरणंतिहिँ ॥३६८ कुमर भणइ सुणि सुयणनर धण्ण दिवस मुझ अज्ज । रज्ज-रिद्धि सव्वंग पुण हुई सहल कय-कज्ज । हुई सहल सहु रिद्धि मिल्यउ जव दुक्खि सहाई तिणि बहु धणि सिउँ कज्ज जं च जाणइँ नवि भाई ॥ सुयण अनइ अरियणह जेउ सुह दुह नवि दिइ नर ।। ते धण धूलि-समाण जाणि इम भणइ कुमर-वर ॥ ३६९ गाथा इअ बहुमाण-पहाणो, पहाण-पुरिस व्व कुमर नवि रज्जे । लद्ध-समय-बल-निउणो, सुयणो पुण जंपए एवं ॥ ३७० सामिय अहं अहण्णो जया गओ तुरय-रयण-संजुत्तो । मुत्तुं तुमं व पुण्णं मग्गे मिल्लिया तया चोरा ॥ ३७१ तेहिं दढ-मुट्ठि-जिट्ठी-पहार-मारेण गहिय-पवरासो । दासो हं तु निरासो, जीवंतो मुक्किओ तत्तो ॥ ३७२ इत्थागएण समए, मए तुमं पुव्वपुण्ण-जोगेणं । पत्तोसि देव संपइ, संपइसुह-कारणं परमं ॥ ३७३ ता झत्ति संविसज्जसु, दूरं देसं तओ भणइ-कुमरो । मा खिज्जसु खित्त-घणं निब्भंतं भुंज सुहमसमं ॥ ३७४ अह अन्नया कुमारी तस्सागारिंग-चिट्ठ-दुट्ठत्तं । नाऊण निउण-मईएँ पयंपए पइ पइं एवं ॥ ३७५ रोडिल्ला सुणउ प्रीतम प्राण-आधार, विद्या-कला-भंडार, रूपि जिणि जीतउ मार, सयल गुणं ॥ प्रेमपीरति-पियारे सई, तुम्ह तणा हित तांई कह वात एक काईं सणेहि घणं ॥ इह दुयण सुयण-नाम, रहइ नितु तुम्ह धाम, करइ सदा सहु काम, अवि सुयणं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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