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जेम मनुष्यशरीरमां स्तनमां दूध, जळ, लोही, खावं, पीवं वगेरे जोवामां आवे छे तेम वनस्पति शरीरमां पण जमीनमां सरकवू, डाळीए डाळीए अने पांदडे पांदडे रस पहोंचाडवो वगेरे क्रियाओ जोवा मळे छे. जेम मनुष्य-शरीरनुं अमुक चोक्कस आयुष्य होय छे तथा इष्ट अने अनिष्ट आहार वगेरेने लीधे वृद्धि के हास थाय छे तेम वनस्पतिशरीरमां पण अमुक चोक्कस आयुष्य तथा इष्ट-अनिष्ट खातरपाणीथी वृद्धि के हास थतां जोवा मळे छे. जेम मनुष्यशरीरमां विविध रोगने लीधे चामडी पीळी पडवी, पेट वगेरे अवयवोनुं वध, गळामां शोष पडवो, आंगळी नाक वगेरे नमी के गळी पडवां वगेरे लक्षणो जोवा मळे छे, ए ज रीते वनस्पतिशरीरमां पण जोवा मळे छे. जेम मनुष्यशरीरने अमुक औषधो के रसायनो खवडाववाथी तेमां ताजगी आवे छे एम वनस्पतिशरीरने पण अमुक विशिष्ट खातर आपवाथी तेमां ताजगी आवे छे. आ बधा उपरथी साबित थाय छे के वनस्पति-शरीरमां पण चेतन रहेलुं छे.
आजना जमानामां जेम आपणे बधी बाबतोमां वैज्ञानिक आधार शोधीए छीए अने धर्मना सिद्धान्तोने वैज्ञानिक ठराववा मथीए छीए ए ज रीते मध्यकाळमां अथवा वि. सं नी ६ थी ७ मीथी लगभग १८ मी सदी सुधी भारतमां पंडितोना वादविवाद, शास्त्रार्थ, दिग्विजय वगेरेने आधारे अमुक वात सिद्ध के असिद्ध ठरती. जैन धर्मना सिद्धसेनदिवाकरथी आचार्यत्रीशीलचंद्रसूरिजी सुधीना प्रखर आचार्यो पण आ पद्धतिए ज आपणी समक्ष तत्त्वनिरूपण करता आव्या छे. पं. शुभविजयगणिए जैन बाळकोने स्याद्वादमा प्रवेश कराववा वादिदेवसूरि अने हरिभद्रसूरि जेवा प्रखर जैन न्यायकुशळ आचार्योना ग्रंथोने आधारे पोताना स्याद्वादभाषा ग्रंथनी रचना करी छे अने ए रीते पोताना गुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीना नामने अमर कर्यु छे. आजना प्रसंगे आवा प्रखर आचार्यश्रीना एक पंडित शिष्यना एक ग्रंथनो परिचय आपीने एमने भावांजलि समर्पित करवामां आपनो अमूल्य समय लेवा बदल मिच्छा मि दुक्कडम्.
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