Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 132
________________ जैन विश्वभारतीनी आगम-ग्रंथमालानां चार अद्यतन प्रकाशन ( १ ) गत चाळीश वर्षथी जैन विश्व भारती संस्थान -लाडनूं द्वारा, एक रीते कहीए तो, जे जैन आगम - साहित्य-प्रकाशननो महायज्ञ चाली रह्यो छे, अने जेने परिणामे आज सुधीमां बत्रीश आगमोनो मूळ पाठ, तेमनी शब्दसूचि तथा अनेक आगमोनो हिन्दी अनुवाद प्रकाशित थई चूक्यो छे, तेना अन्वये १९९६मां प्रकाशित चार ग्रन्थ अमने प्राप्त थया छे : (१) अणुओ गदाराई (संपादक : विवेचक - आचार्य महाप्रज्ञ) (२) व्यवहार/भाष्य (संपादिका समणी कुसुमप्रज्ञा), (३) श्रीभिक्षु आगम विषय कोश (संपादिका : साध्वी विमलप्रज्ञा, साध्वी सिद्धप्रज्ञा), (४) जैन आगमः वनस्पति कोश (संपादक : मुनि श्रीचन्द्र 'कमल' ) 'अणुओगदाराई' मां संशोधित पाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, प्रकरणवार आमुख तथा विस्तृत टिप्पणी अने सात परिशिष्ट (जेमांथी एक देशी शब्दोने लगतुं छे) एटली सामग्री आपेली छे. www. 'व्यवहार भाष्य' मां मूळ पाठ, ग्रंथनुं अनुशीलन अने २३ परिशिष्ट (एक देशी शब्दोनुं) आपेल छे. 'श्रीभिक्षु आगम विषय कोश' मां (१) 'आवश्यक' (२) 'दशवैकालिक' (३) 'उत्तराध्ययन' (४) नन्दी अने 'अनुयोगद्वार' तथा तेमना व्याख्याग्रंथोने आधारे १७५ विषयोनो संग्रह कर्यो छे. 'जैन आगम : वनस्पति कोश' मां मूळ प्राकृत संज्ञा, मळतो होय त्यां तेनो संस्कृत पर्याय, हिन्दी संज्ञा, निघंटुओमांथी आधारभूत सामग्री, वनस्पतिनुं विवरण, पर्यायो अने चित्रो एटलं आप्युं छे. अनेक परिशिष्टोने लीधे जैन आगम-गत सांस्कृतिक, भाषाकीय वगेरे सामग्रीना अखूट खजाना समा संदर्भग्रंथ तरीके पण आ प्रकाशनो अत्यंत उपयोगी नीवडशे । संपादकोने अथाग विद्या- पुरुषार्थ माटे धन्यावाद । गणाधिपति श्री तुलसीजीने मूळ प्रेरणा तथा समग्र आयोजन अने तेमना सहायकगणने कार्यसिद्धि माटे धन्यवाद । T अंते में 'व्यवहारभाष्यमां' आपेल देशी शब्दोनी सूचिमांथी जे थोडुंक आचमन कर्तुं तेनो संकेत नीचे आ छु । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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