Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 133
________________ [128] (२) केटलाक देश्य शब्दो पर टिप्पण व्यवहार भाष्यनी देशीशब्द-सूचि (पृ.११३-१२३) अणंतग-णंतग 'वस्त्र' : गा.२८५०मां उक्कोसाणंतगा छे. त्यां अणंतग एवं शब्दरूप अने 'वस्त्र' अर्थ हशे ? होय तोये शब्दरूप णंतग एवं ज होय । गा. ३२७७मां मूळमां पाठ णंतग छे. पण टीकामांथी सूचिमां णंतिग एवं शब्दरूप आप्यु छे. पासम.मां णंतग, “देशी शब्दकोश'मां णंत, णंतक, णंतग 'वस्त्र'ना अर्थमां तथा णंतिक्क 'वणकर', 'छीपो' एवा अर्थमां नोध्यां छे । मोनिअर विलिअम्झना संस्कृत कोशमां लक्तक 'चीथरेहाल वस्त्र' (सुश्रुत) अने नक्तक (ए ज अर्थमां) नोंध्या छे । टर्नरना कोशमां क्रमांक १०९३० नी नीचे लत्त एना आनुमानिक मूळ शब्द परथी लक्तक एवं संस्कृतरूप घडी कढायुं होवानुं मान्युं छे। गुजराती 'कपडुलत्तुं' 'कपडां-लत्तां' एमां ते ज शब्द जळवायो छ । उत्तुण, उत्तुयय, उत्तूइय : देना. (१.९९) में उत्तुण 'दृप्त' अर्थ में दिया गया है। इस से बना हुआ नामधातुका व्यभा. २३९० में प्रयोग हुआ है। सही पाठ उत्तुइय होना चाहिए। उत्तूइय शब्दरूप भ्रष्ट है, इससे छंदोभंग होता है। गा. ३०१० में शायद 'गर्व से उत्तेजित' एसा अर्थ हो । देशको० में भी उत्तुइय ऐसे शुद्धि करनी होगी। उप्पेउं : टीका में दिये गये अर्थ ('उप्पेउं देशीपदमेतद् अभ्यङ्ग्य') के आधार पर मूल पाठ तुप्पेउं हो एसी प्रबल संभावना है। उप्प-/ओप्प-नो 'शाण वगेरे पर घसी उज्ज्व ळ करतुं' एवो अर्थ छ । जुओ ओप्प, ओप्पिअ, ओप्प (तथा गुजरातीमां ओप; टर्नरना कोशमां ओप्प'Polish' क्रमांक २५५६) तुप्प ‘घी-तेल वगेरेथी लिप्त' 'घी' (तुप्पइअ ‘घी से लिप्त' उत्तुप्पिअ 'स्निग्ध, चीकगुं') एना उपरथी बनेल नामधातुनुं आ संबंधक भूतकृदंत छ । पाठ में तुप्पेउं दिया गया है यह ठीक है। सूचि में तुप्पेउं भी देना चाहिए था । उल्लण/ओल्लण : इसकी चर्चा के लिए देखिये इसी अंक मे ... । गोलिय : कोलिय ऐसा पाठ होना चाहिए । देखिये कोलिअ 'तंतुवाय', देना० १, ६५. चप्पुटिका : मूळ अर्थ 'चपटी' देना. ८,४३-देश्य सेवाडओनो अर्थवाचक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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