Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ [110] रसायण-रास'मां : 'अधिरु जु जिव किक्काणु तुरंगम' (कडी १३) । 'कथासरित्सागर'ना विषमशील-लंबक (सर्ग १२१, पद्यांक २७८)मां विविध रंगना अश्वो पर सुभटो आरूढ थया तेना वर्णनमां 'श्यामा कोंकाणी तुरगी' एवो निर्देश मुद्रित पाठ अनुसार छे । टॉनी एनो black konkani marc.. एवो अनुवाद कर्यो छे, अने Bohllingkना संक्षिप्त संस्कृत कोशमां पण 'कोंकणप्रदेशनी घोडी-'कौंकणी' एवं शुद्ध शब्दरूप छंद खातर बदलीने 'कोंकाणी' कर्यु ए प्रमाणे जर्मन भाषामां अर्थ अने टिप्पण आप्यां छे । तेने अनुसरीने मोनिअर विलिअम्झना संस्कृत-अंग्रेजी कोशमां पण ए ज शब्दरूप अने अर्थ "या छे। पण हकीकते 'कथासरित्सागर'नो पाठ भ्रष्ट छे; 'केक्काणी' एवो पाठ जोरए । ४. खेह 'धूळ'ना अर्थमां 'खेहा' जिनेश्वरसूरिना कथाकोषप्रकरण(ई. स.)मां मळे छे : तुरय-खरुक्खित्त-खोणी-खेहाए (१६,२७) 'घोडानी-खरीश्री जेमां भौंयनी ऊडती हती'. गुजराती 'खेपट ऊपड्यो' एवा प्रयोगोमां मूळे 'खेहपट्ट'- 'धूळनो पट' (ऊडे एटली झडपथी)' एवो अर्थ हशे ? ५. अप. वाहुडि कनकामरना अपभ्रंश काव्य ‘करकंडुचरिउ'( )मां 'बाहुडि गउ' ए शब्दो ‘पाछो गयो' ना अर्थमां वपराया छ : बाहुडि गउ सो निय-पुरहो । (१.१२.२०) 'ते पोताना नगरमां पाछो फर्यो ।'सं 'व्याघुट्'-पाछा वळवू, प्रा. 'वाहुड्' वगेरे (टर्नर, क्रमांक १२१९२). तेनुं संबंधक भूतकृदंत 'वाहुडि', हिंदी 'बहुरि' -फरी फरीथी-हिंदी फिर से. ते ज प्रमाणे गुज. 'वळी' (पुनः) पण 'वळवूनुं संबंधक भूतकृदंत छे. 'बहुरि' 'फरी', 'वळी' शब्दो ‘पुनः' एवा अर्थमां रूढ थया छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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