Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ [105] रीते कहेवाय ? कारण के तेमां जीवनां प्रगट लक्षण जोवा मळतां नथी. आना अनुसंधानमां श्रीगुणरत्नसूरिजीने अनुसरीने पं. शुभविजयगणि स्याद्वादभाषावृत्तिमां कहे छे के भले पृथ्वी वगेरेमां जीवनां प्रगट लक्षण न जोवा मळतां होय छतां अप्रगट लक्षणो तो जोवा मळे छे ज. जेम दारू वगेरे पीने बेभान थयेला माणसमां जीवता होवानां प्रगट लक्षणो देखातां नथी, छतां अप्रगट लक्षणो उपरथी ते जीवतो होवानुं व्यवहारमा मानवामां आवे छे, ए ज रीते पृथ्वी वगेरेने सजीव गणवा जोईए. पृथ्वी वगेरेमां पोतपोताना आकारे रहेला लवण, विद्रुम, पथ्थर वगेरे पोतपोताना जेवा पदार्थो बनावे छे. वनस्पति पोतपोतानां जुदां जुदां फळो आपे छे. आम चैतन्यलक्षण प्रगट न होवा छतां अप्रगट तो छ ज. एथी पृथ्वी वगेरेने जीव गणवां जोईए. जेम शरीरमा रहेलां हाडकां शरीरने अनुसरता आकारवाळ, कठण अने सचेतन होय छे ए ज रीते पृथ्वी शरीर ते ते जीवने अनुरूप ज होय एज रीते जळ पण अप्काय जीव छे. हाथीनुं शरीर कलल अवस्थामां द्रव अने सचेतन होय छे. ए ज रीते अप्काय जीवनुं शरीर पण प्रवाहीरूप अने सचेतन होय छे. ईंडामां अवयवो उत्पन्न थवा छतां प्रवाहीस्वरूप होय छे अने चेतन पण होय छे. बरफ वगेरे अप्काय होवाथी सचेतन छे. खोदेल भूमिमांथी देडकानी जेम घणी वार जळ पण पोतानी मेळे उ नीकळी आवे छे. आकाशमां रहेलुं जळ पोतानी मेळे ज वादळमाथी उद्भवीने माछलांनी जेम नीचे पडे छे. नदी वगेरेनां जळमां खूब ठंडीना दिवसोमा ओछा जळमां ओछु अने वधु जळमां वधुं हूंफाळापणुं जोवा मळे छे. आ हूंफाळापणुं ते सचेतन होवाथी ज होय छे, जेम मनुष्यशरीरमां होय छे तेम. वहेली सवारे पश्चिम दिशाथी पूर्वदिशामां तळाव वगैरेनी सपाटी पर नजर करीए तो वराळ एकठी थयेली जोवा मळे छे ए पण एमां रहेला अप्काय जीवने लीधे ज होवाथी जळ सचेतन छे. जेम रात्रे आगियानो देह चळकतो देखाय छे एम अंगारा वगेरेमां पण अमुक विशिष्ट शक्ति तेमां रहेला तेजस्काय सचेतन जीवने लीधे ज रहेली छे. जेम जीवता प्राणीने ज ताव आवे, मरेलाने न आवे, ए ज रीते गरमी पण सचेतनमां ज होई शके, निर्जीवमां नहीं. जेम देव पोतानी शक्तिना प्रभावे के अंजन वगेरे विद्याना प्रभावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142