Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 96
________________ [91] जलोदर१४ क्रम(कृमि) १५ पीहो१६ शूल१७ सोजो१८ गुबडा१९। .खास२० अजीर्ण २१ ताव२२ फेरो२३ भ्रम२४ मोह२५ बोली न शके२६ ७॥ रक्ताबुंदविसर्पाद्या उपपापोद्भवा गदाः । वंजपतानकस्वित्र विर व )पुःकंपः विचचिकाः ॥ ८ रक्तरोग२७ विसर्पवायु२८ पाप थकी उपना रोग सर्वे । दंदरोग कस२९ पतानकरोग३० चित्रकोढ३१ देहीकंप३२ द्राद३३ ८॥ वल्मीकपुण्डरीकाद्या रोगाः पापसमुद्भवाः । शिरोऽाद्या नृणां रोगाः अतिशापोद्भवा हि ते ॥ ९ राफो३४ श्वेतकोढ३५ रोग पाप थकी उपना । माथानो रोग, नरने रोग अति शाप थकी उपना रोग ॥ ९ ब्रह्महा नरकस्यान्ते पाण्डुकुष्टी प्रजायते । कुष्टी गोवधकारी च नरकस्यान्तेऽनिःकृति(:)॥ १० ब्रह्महता(त्या)नो धणी नरकमध्ये जाइ धोलो कोढ उपजइ । गोहत्याकारी कोढी थाइ वली नरके जाए दयाहीन ॥ १० पितृहा चेतनाहीनो मातृहान्धश्च जायते । दुःखानि सहमानश्च नरकेषु प्रजायते ॥ ११ बापनो मार चेतनाहीन थाइ, मानो मार अंध थाइ । दुःख सहतो थको नरके जाइ ॥ १२ स्वसृघाती तु बधिरो नरकान्ते प्रजायते । मूको भ्रातृवधे चैव तस्येयं निकृतिः स्मृताः ॥ १२ ससरानो मार बधिरो थाइ नरके जाए।। मूंगो थाइ, भाइनो मार ते निर्दयी जाणवो ॥ १३ बालघाती च पुरुषो मृतवत्सः प्रजायते । गोत्रहा लूतकायुक्तः वपुः स्वेदी च लूणहृत् ॥ १३ बालकनो मार मर्या छोरु थाइ ।। गोत्रीयानो मार कोलीया रोग थाइ, लूणचोरने हाथपग गले॥१३।। स्त्रीहन्ता चातिसारीस्यात् राजहा क्षयरोगभाक् । रक्ताबुंदी वैश्यहन्ता नरके च प्रजायते ॥ १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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