Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 98
________________ [93] निद्रालुः सर्पहा मर्त्यः कुब्जो मूषकहा भवेत् । सुरापः श्यामदन्तः स्यात् मद्यपो रक्तपित्तवान् ॥ २१ उंघ घणी पामे सर्पनो मार कुबडो थाइ उंदरनो मार । सुरापाननो करणार श्यामदंत थाइ, मद्यपानी रक्तपित्त थाइ ॥२१॥ अभक्षा भक्ष्य )भक्षणाच्चैव जायन्ते कृमयोदरे । उदक्या वीक्षितं भुक्त्वा जायते कृमिलोदरम् ॥ २२ अभक्षनो खानार उपजे पेटमा कृम थाइ । रतिवतीनु फरसु भोजन करि ते थाइ उदरमध्ये क्रम ।। २२ भुक्त्वा चास्पृशसंस्पृष्टं जायतेऽतिकृशोदरः ।। मार्जारादिभिः भुक्तं भुक्त्वा दुर्गन्धवान् भवेत् ॥ २३ ' आभडछेटनु अन्न जिमइ ते नर थाइ कृशोदर । बलाडीनु बोटु जिमि देहिने विषे दुर्गन्धपणु थाइ ॥ २३ अनैवेद्यं सुरादिभ्यो भुञ्जानो जायते नरः । परान्नविघ्नकरणा-दजीर्णमुपजायते ॥ २४ अनैवेद्य देवतादिकने भाडभूजो थाइ ते नर । परान्न अंतराय करि ते अजीर्ण रोग उपजइ ॥ २४ मन्दोदराग्निर्भवति सति द्रव्यो कदन्नदः । विषदो च्छदिरोगी स्यात् मार्ग्रहा( र्गहा) पदरोगभाक् ॥ २५ उदरनि अग्नि मंद थाइ छति वस्तु भूडु आपे अन्न । आगलीने विष दे ते नर फेरानी बाधा थाइ, वाट मारि तेहनि पगे राफो रोग .पामि ।। २५ पिशुनो नरकस्यान्ते जायते श्वासकासवान् । .. धूर्तोऽपस्माररोगी स्यात् शूली त्वन्योपतापकः ॥ २६ चाड़ीनो करणार नरके जाइ अनिसास-खास नो रोग थाइ । जे धूर्त होइ ते कस रोग उपजे, शूलरोग उपजइ अन्यने प्रताप करे तेहने ॥२६।। दवाग्निदायकश्चैव रक्तातिसारवान् भवेत् । प्रतिमाभङ्गाकारी तु अप्रतिष्टः प्रजायते ॥ २७ दवना देनारनइ लोहीनो अतिसार थाइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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