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२. महोपाध्याय श्रीविनयविजयजी ए सत्तरमा शतकना एक परम विद्वान जैन ग्रंथकार अने साधुपुरुष छे. लोकप्रकाश, हेमप्रकाश अने इन्दुदूत जेवी रचनाओ द्वारा तेओ विद्वज्जगतमां सुख्यात छे. तेमनी शिष्यपरंपरा विशे झाझी विगतो प्रायः प्राप्त नथी, ते आ पुष्पिकामां प्रथम वार प्राप्त थाय छे, जे उपरथी जाणी शकाय छे के तेमनी शिष्यपरंपरा ८-९ पेढी सुधी तो लंबाई हती ज. तेनो क्रम आम गोठवी शकाय :
१. विनयविजय, २. पं. नरविजय, ३. पं. वृद्धिविजय, ४. पं. माणिक्यविजय, ५. पं. मेघविजय ६. पं. मुक्तिविजय, ७. पं मोहनविजय, ८. मु. दानविजय, हेमचंद्रजी.
आ पुष्पिकामां छेवटे आवतां ३ नामोने हेमचंदजीना 'चेला' समजीए तो ते १० मा क्रमांकमां आवी शके.
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९.
ट्रंक नोंध : हेमचन्द्राचार्ये प्रतिष्ठित प्रतिमा
घणां वर्षोथी मनमां एक जिज्ञासा प्रवर्तती हती के हेमचन्द्राचार्य आटली बधी प्रसिद्ध विभूति छे. तेमणे घणां चैत्यो तथा जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा कर्याना उल्लेखो मळे छे. कुमारपाले पण सेंकडो मंदिरो तथा प्रतिमाओ करावेल छे : तो पण आजे एक पण प्रतिमा एवी केम नथी मळती के जेमां हेमाचार्यनो स्पष्ट उल्लेख होय ? बधो नाश थयो होवानुं स्वीकारीए तो पण कोईक नमूनो क्यांय नहि बच्यो होय ?
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-शी.
वर्षोनी जिज्ञासानो रोमहर्षक जवाब थोडा वखत पहेलां अचानक मळी आव्यो. जामनगरना आदीश्वर - जिनालयना मेडा उपर एक धातुप्रतिमानी भाळ मळी आवी छे, जेना पर हेमचन्द्राचार्यनो स्पष्ट नामनिर्देश छे. आ रह्यो ते प्रतिमानो लेख :
“संवत् १२२३ वर्षे माघ वदि ८ वीरासुतेन देपलाकेन भ्रातृव्य..... माडुकस्य श्रेयसे चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥"
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