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दूंक नोंध एक नोंधपात्र पुस्तकनी प्रशस्ति
" सकल भट्टार्क पूरंदर भ. श्री श्री दिनकर त्युल (तुल्य) सासनथंभमलेछप्रतीबोधक हिरहीरदीपक - अकबर पातसाहनें धर्म परुपक- सीधाचलजीनो मूडको सोनामहोर छोडावी, सरोवर जाल मूकावी, सेर १। चडकलांनी जीभ्या जोड़तीते मूकावी, जाचक भोजक ते दिनथी थया, हाथी सांमइआमां आपो पातसाहें, ते आपीनें जण जाचक ठाकोर पदवी आपी, ऐहवा श्री श्री श्री विजय हीरसूरीस्वरजी आचार्य, तत् शिष्य कीर्तिविजेय उपाधायजी, तत् शिष्य विनय विजय उपाधाय, तत सीष पं. श्री पू. पं. नरविजेय पंन्यास, तत् शिष्य पं. श्री पू.पं. वृधिवीजेय पंन्यास, तत् शीष पं. श्री पू.पं. मांणक्य विजेय गणी, तत्सीष पं. श्री. पू. पं. मेघविजेयगणी, तत् शिष्य पं. मुक्तिवीजेजी, तत् शिष पं. मोहनविजयजी भ्राता मू. रविवीजेजी तद्भ्राता मूनी-वीजयजी, चेला मू.दांनविजेंजी, त.चे. हेमचंदजी, संवत् १८७८ ना वर्षे कार्त्तिक सुद १५ दने वार सूक्रे कल्पसूत्र वषांण आठ संपूर्ण लषां छें., वाचनार्थं मु. तत्व विजयजी, घनोघ बंदरे चेला श्रीवीजे, मायावीजे, पं. अम्रतबीजेजी ॥ "
मारा मित्र कवि मुनिराज श्रीधुरंधरविजयजीना संग्रहनी एक कल्पसूत्रनी पोथीना अंतिम १३२ मा पृष्ठनी, तेमणे मोकलेली झेरोक्स नकलना आधारे उपरनी प्रशस्ति अहीं उतारी छे. आ प्रशस्तिमां बे एतिहासिक तथ्यो उजागर थयां होवाथी तेनुं खास महत्त्व छे. ए बे तथ्यो आवां छे :
१. पाटणमंडलमां भोजक ज्ञाति प्रख्यात छे. तेमने 'ठाकोर' एवं 'बिरुद मळेलुं छे, जे आजे तेमनी अटक लेखे घणी वार प्रयोजाय छे. आ बिरुद तेमने कोणे आयुं, क्यारे आप्युं, तेनो ऐतिहासिक उल्लेख उपरनी प्रशस्तिमां पुष्पिकामां प्राप्त थाय छे, जे अनन्य छे.
आ मुद्दा उपर ते ज पुष्पिका उपरना टबामां पण आ प्रमाणे नोंध छे : "जाचक दांन आपीनें भोजक कर्या, पातसाह पासें ठाकोर पदवी अपावी ते आज पण ठाकोर छें ऐहवा"
सारांश के भोजक बंधुओने हीरविजयसूरिनी प्रेरणाथी अकबर बादशाहे ठाकोर पदवी आपीने भोजक बनाव्या हता.
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