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आमां गामनुं नाम नथी. आचार्यना नाम आगळ कोई विशेषण के गच्छनाम नथी, ते बाबत आचार्यनी निःस्पृहता, नम्रता अने जागृत मध्यस्थतानुं सूचन करी जाय छे. १२२३मां हेमचन्द्रसूरि एक ज हता, बीजा नहि, ते इतिहासथी सिद्ध छे.
आ प्रतिमानी छबी मारी सामे पडी छे, जे जोतां ज समजाय छे के प्रतिमा, पूजापद्धतिने कारणे महदंशे घसाई गई छे. मोंनो नकशो खलास छे, नाक - आंख-कान- होठ घसाईने एकाकार छे. आ स्थिति जोतां लागे छे के थोडा ज वखतमां आ प्रतिमानो लेख पण नष्ट थई जशे अने पछी कोईक भाविक (!) द्वारा प्रतिमा पण नामशेष थई शके. आवुं कांई बने ते पूर्वे प्रतिमानी जाळवणी अंगे योग्य प्रबंध थाय ते इच्छनीय छे.
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-शी.
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