Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ 'हीरसौभाग्यम्'नी स्वोपज्ञवृत्तिमां प्रयुक्त तत्कालीन गुजराती-देश्य शब्दो डो. प्रह्लाद. ग. पटेल वडनगर 'हीरसौभाग्यम्' संस्कृत महाकाव्यना कर्ता देवविमल गणीजीए तेना पर 'सुखावबोधा' (वि.सं. १६७१) नामे स्वोपज्ञवृत्ति रची छे. ९७४५ श्लोकसंख्याकलेवर धरावती प्रस्तुत वृत्ति-टीका अनेकधा विशिष्ट छे. तेमां बे बाबतो नोंधपात्र छे. एक, टीकाकारे अनेक शास्त्रोमां अवगाहन करी विशाळ संदर्भ सागरमांथी संस्कृत, प्राकृत गुजराती देश्य भाषानां सूक्तिमौक्तिकोनुं चयन कर्यु छे; बीजूं, पोताना समयना केटलाक गुजराती - देश्य भाषाना शब्दोने टीकामां प्रयोज्या छे. सामाजिकता तथा भाषाशास्त्रनी दृष्टिए प्रस्तुत टीका निःशंक रीते अभ्यसनीय कांठा पेडू १.५३ २.४६ ३.४ ३.४ उपकंठे - तटपार्श्वे स्त्रीकटया अग्रेतनप्रदेशः शमी कृष्णलता बन्धूकानि सर्वोत्तममणिः कुटजा गिरिमल्लिकाः छाया शिरसा तृणानामुन्मूलनम् चतुराशी चर्मदण्डः गर्भगेहा अपवरकाः खेजडी कालीवेलि वि(ब)पोरियां नगीनो कुडउ छांहडी माथासिरऊ नींदण चहुटा चाबखो उरडा [5] ३.१७ ३.५५ ४.२६ ४.३२ ४.४९ ४.१४५ ५.१६ ५.४० ५.६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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