Book Title: Antargruha me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 13
________________ उस धर्माचरण का मतलब क्या है? दिनभर पूजा-पाठ करते फिरें और राग-द्वेष के द्वन्द्व खत्म न हों, तो पूजा के नाम पर यह केवल पाखंड का बोझ ही ढोना हुआ। हम किसी की पूजा-पाठ के लिए नहीं जन्मे । हम स्वयं पूज्य-पावन बनें, ऐसी प्यास हो, पुरुषार्थ हो । हममें भी परमात्म स्वरूप की दिव्य सम्भावनाएं हैं। 1 सुदूर भविष्य की चिन्ता न करें, अपने आपको स्वस्थ बनाएं। जीवन को स्वर्ग बनाएं, आत्मा को आनन्द का अधिष्ठाता बनाएं। जीवन की तीर्थयात्रा तो जब पूरी होनी होगी, तब होगी, हमारा तो आज जहाँ पड़ाव है, उसको भी तीर्थ मानेंगे और हर पड़ाव को भक्ति-भावना से गुंजा देंगे, सुख-शांति और आनन्द का घड़ों भर अमृतपान करेंगे । Join मनुष्य और धर्म / ६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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