Book Title: Antargruha me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ ___ मानवजाति ने बड़े तीखे जहर पाल रखे हैं। कभी देखा, क्रोध कितना जहरीला होता है? सर्प का जहर तो औरों को ही घात पहुंचाता है, पर क्रोध औरों को तो आग लगाता ही है, खुद को भी सुलगाता है। क्रोध की तरह ही काम को ले लो। काम तो इतना बदतमीज है कि इसने आंख, नाक, कान-सबको विकृत बना रखा है। काम माया का मालिक है। काम का मायाजाल ही कुछ ऐसा है कि जानवर हो या इंसान, सब खुद-ब-खुद जाकर इसमें उलझ जाते हैं। हालांकि विकृत मार्ग से गुजरते रहने पर अन्ततः मनुष्य उकता जाता है। वह कई बार सोचता है कि वह अपने संवेगों और कमजोरियों पर आत्म-विजय प्राप्त करे, पर खुजली का रोगी खुलजाने के लिए मानो मजबूर हो जाता है। आखिर यह छूटे भी तो कैसे, जब तक व्यक्ति यह निश्चय ही न कर पाये कि वह आत्मा है, उसे मुक्त होना है, चाहे जो बाधाएं आएं पर उनसे पार लगना है। किसी का सुधरना या सुधारना मुश्किल है, पर अगर व्यक्ति खुद ही सुधरने के लिए जागरूक हो जाये, तो दुनिया में ऐसी कौन-सी अड़चन है, जिसे पार न पाया जा सकता हो। हम संकल्प लेंमैं अपने शरीर को स्वस्थ-प्रसन्न-पवित्र रखूगा। मैं अपने विचारों को स्वस्थ प्रसन्न-पवित्र रखूगा। मैं अपनी बुद्धि को स्वस्थ प्रसन्न-पवित्र रखूगा। वस्तुतः शारीरिक, वैचारिक और बौद्धिक स्वस्थताप्रसन्नता-पवित्रता ही आत्मा को स्वास्थ्य, आनन्द और निर्मलता Jain Education International For Personal & Private use oअन्तर-गुहा में प्रवेश/३६०

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