Book Title: Antargruha me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ मानव-मुक्ति जितना बड़ा संसार हमारी आंखों के सामने फैला हुआ है, उससे कहीं ज्यादा हमारे भीतर बसा है । भीतर के संसार को पहचानने और उससे मुक्त होने के लिए ही ध्यान का मार्ग है। बगैर ध्यानयोग के हमारा अन्तर् - विश्व अज्ञात बना रहता है। ध्यानयोग से जहाँ स्वास्थ्य, ताजगी और स्फूर्ति मिलती है, वहीं अन्तरद्वन्द्व से मुक्ति और चेतनागत विकास भी होता है । ध्यान हमें हर चीज को नये नजरिये से देखने की क्षमता प्रदान करता है। मुक्ति हर कोई चाहता है, पर मुक्ति का मार्ग किसी निश्चित राह से नहीं गुजरता । उसे खोजना पड़ता है। यदि हर चीज को नये सिरे से देखने की दृष्टि उपलब्ध हो जाये, तो मुक्ति के भी नये-नये द्वार - दरवाजे खुल सकते Jain मानव-मुक्ति/५८ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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