Book Title: Antargruha me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ परिणाम तात्कालिक होता है, तो कुछ का दूरगामी। हम जो आज भलाई अथवा बुराई करते हैं उसका फल भी हमें हाथोहाथ मिले, यह जरूरी नहीं है; ठहर कर भी मिल सकता है। यह भी सम्भव है कि उस कर्म का हिसाब-किताब करने के लिए हमें फिर से नया जन्म लेना पड़े। हम आज जो कुछ कर रहे हैं या हमें जो फल मिल रहा है वह आज के अथवा पूर्वजन्म में से किसी भी जन्म के कर्मों का प्रतिफल हो सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमारे बहुत सारे कर्मों का हिसाब इसी जन्म में चुकता हो जाता है पर जो कर्म अपनी प्रगाढ़ता बना चुके हैं वे हमारे भावी जन्मों में से किसी भी जन्म में उदय में आ सकते हैं। कर्म, कर्म-वृत्ति अथवा कर्म-नियति कमजोर भी हो सकती है और सुदृढ़ संकल्पबद्ध भी। सामान्य वृत्तियां दमन, शमन और रेचन की प्रक्रिया से क्षीण हो सकती हैं, परन्तु जो कर्म हमारी चदरिया पर तेल के छींटे की तरह जम चुके हैं, उनका तो हमें भुगतान करना ही पड़ता है। बचने का पुरुषार्थ करने के बावजूद बचना कठिन लगता है। जितना गहरा बन्धन हुआ है उतनी ही गहराई से संकल्पबद्ध कर्मों से मुक्ति का प्रयास हो तो कर्मों के बोझ से निर्भार होने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। कर्मों का कैसा भी परिणाम क्यों न हो, हम पाप की उपेक्षा करें, पापी की नहीं। अपने भले-बुरे कर्मों के कारण ही व्यक्ति भला-बुरा कहलाता है। हम अपने कर्मों के प्रति सावधान हों, यह जरूरी है। यदि कोई गलत राह पर चलने का प्रयास करे, तो यथासम्भव हम उसे सुधरने की प्रेरणा दें। उसका भव Jain Education International For Personal & Private use अन्तर-गुहा में प्रवेश/३५.org

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