Book Title: Antargruha me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 48
________________ तो हमारा जीना कितना दूभर हो जाता । पूर्व जन्म की मां इस जन्म की पत्नी हो सकती है । पूर्व जन्म का पिता इस जन्म का पुत्र हो सकता है । घर में बंधा पालतू जानवर किसी जन्म का हमारा अपना ही सगा सम्बन्धी रहा हो, तो जरा सोचो, हमें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़े। हम या तो मानसिक रूप से अशांत विक्षिप्त हो जाएं या फिर हंसते-हंसते खस्ताहाल । यह तो परमात्मा की कृपा समझो कि मृत्यु के साथ ही पूर्व स्मृतियां भी अस्तित्व की गहराई में तिरोहित हो जाती हैं । कुछ लोग ऐसे देखने में आते हैं जिन्हें अपने पूर्वजन्म के प्रसंगों का स्मरण हो आता है। कई बार तो वे प्रसंग खोजबीन करने के बाद प्रमाणित भी हो जाते हैं, पर जरूरी नहीं है कि ऐसा हो ही। हमें पूर्व जन्म का जो बोध होता है अब यह नहीं कहा जा सकता कि वह पूर्वजन्म कौन - सा रहा है । बिल्कुल पिछला ही अथवा उससे भी और पहले का । यदि स्वतः जन्मजात पूर्व स्मरण हो तब तो बात अलग है | सातत्य-बोध के कारण ऐसा हो सकता है। पर जहाँ किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान को देखकर किसी तरह का पूर्वबोध हो तो उसकी प्रामाणिकता तो वह बोध स्वयं ही है । हम इस सिलसिले में पूर्वजन्म, पुनर्जन्म और पूर्णजन्म को समझें । 'पूर्णजन्म' से अभिप्राय आत्मा की कर्म - बन्धन से, जन्म-मृत्यु से मुक्ति है । पूर्वजन्म की स्मृति हमारे अवचेतन अथवा गूढमन की परतों के उघड़ने से होती है। जिसकी चेतन मन के पार पहुँच हो जाती है उसे कभी भी किसी भी क्षण अपने अन्तरध्यान में सम्बद्ध पूर्वजीवन की झलकियाँ नजर आ सकती हैं। सीधे बीते जन्म का भी बोध हो सकता है और पूर्वजन्मों में से किसी भी जन्म की झलक मिल सकती है । ध्यानयोग की Jain Education International For Personal & Private use अन्तर- गुहा में प्रवेश / ३३y.org

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