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. हृदय में जीना या हार्दिक होना सदा आनन्द में विहार करना है। हमारे अन्तरहृदय में स्वर्गलोक है, देवत्व का निवास है। व्यक्ति के निजी परमात्म-स्वरूप का बीजांकुरण यहीं होता है। हृदय, मेरे देखे मनुष्य का मानसरोवर है।
___ मन मनुष्य की सबसे चपल-चंचल वस्तु है। यह चेतनागत ऊर्जा की ही एक सशक्त अभिव्यक्ति है। मन बड़ा विचित्र है। स्वर्ग और नरक मन के ही दो पहलू हैं। भौरे की तरह फूलों पर मंडराना इसका धर्म है। इसे दुलत्ती तो तब खानी पड़ती है जब फूल शूल बन जाते हैं। सागर में नहाने का मजा तब किरकिरा पड़ जाता है जब उसका खारापन भी मन के हिस्से आता है। मन मनुष्य की मूल बीमारी है। शरीर की स्वस्थता के लिए मन का स्वस्थ होना जरूरी है ।
बुद्धि भी मन जैसी ही एक सशक्त क्षमता है, पर मन उच्छृखल होता है, बुद्धि विकासमान होती है। जीवन में मन की बजाय बुद्धि की प्रधानता होनी चाहिये। प्राण की भूमिका प्राणियों की है, मन की भूमिका मनुष्यों की है, बुद्धि की भूमिका ऋषियों-विज्ञानियों की है।
मन और पार्थिव प्राण के स्वभाव से मुक्त होने पर ही बोधिलाभ और कैवल्य-लाभ हो सकता है।
मन की सबसे बड़ी उपलब्धि उसकी अपनी पहुंच है। चेतना मन के जरिये कहीं भी अपनी पहुंच बना सकती है। वह हर चीज, दृश्य या कल्पना को अपने में साकार कर सकती है। मन और बुद्धि वास्तव में मनुष्य की अव्यक्त चेतना के अभिव्यक्त रूप हैं।
मन में विकल्प उठते हैं, बुद्धि विचार करती है, हृदय
dainअंतरंग/१६०nal
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