Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सत्तमं अज्झयणं (उंबर दत्ते)
७७७
य अणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण' य करोडियाण य कप्पडियाण य पाउराण य–अप्पेगइयाणं मच्छमसाइं उवदिसइ', अप्पेगइयाणं कच्छभमसाइ, अप्पेगइयाणं गाहमंसाइं. अप्पेगइयाणं मगरमसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारभंसाई, अप्पेगइयाणं अयमसाई, एवं- एलय-रोज्झ-सूयर-मिग-ससय-गोमहिसमसाइं उवदिसइ, अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसाइं उवदिसइ, अप्पेगइयाणं वट्ट क-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाइं उवदिसइ, अण्णेसिं च बहूणं जलयर-थल -यर-खहयरमाईणं मंसाइं उवदिसइ । अप्पणा वि णं से धण्णंतरी वेज्जे तेहिं बहूहिं मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य, अण्णेहि य बहूहिं जलयर-थलयर-खहयरमंसे हि य, मच्छरसएहि य जाव मयूररसएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे
वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ ।। १७. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहं
पावं कम्म समज्जिणित्ता बत्तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए
उववण्णे ॥ उंबरदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८. तए णं सा गंगदत्ता भारिया जायनिंदुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा
विणिधायमावज्जति ॥ १६. तए णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि
कंडबजागरियं जागरमाणीए अयं अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूई वासाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि । तं धण्णाप्रो णं तानो अम्मयाअो, संपुण्णाओ णं तारो अम्मयात्रो, कयत्थानो णं तानो अम्मयानो, कयपुण्णाओ णं तानो अम्मयानो, कयलक्खणाओ णं तायो अम्मयानो, कयविहवाओं णं ताओ अम्मयायो, सूलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयगाई थणदुद्धलुद्धयाई महुरस मुल्लावगाइं मम्मणपजंपियाई थणमूला' कक्खदेसभागं अभिसरमाणयाई' मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊण उच्छंगे निवेसियाई देंति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए ।
१. भिक्खुयाण (क, ख); भिक्खुणाण (ग);
भिक्खाचरे (घ)। २. उवदंसेइ (घ)। ३. एला (क, घ); वि० १।४।१६ सूत्रे कतिचन
पदानि अधिकानि दृश्यन्ते । ४. थणमूल (क, ख, घ)। ५. अतिसर० (क, ख, ग, घ)।
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