Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 876
________________ १।१६।२७६ १३५१६६-१०१ १।१८।१२ १।१६।२२० १।८।१६६ १।१६।२४६ ११८।१७२ १।२।१२ १।१४।३६ २२।२० १२।५२,५३ १।१२।४ १।१६।२६२ १।५।३४-३८ १११८८ १।१६।२१६ १।१६।२१ १।१६।२४५ १०८१५६ १।२।१२ १।१४।३८ १।२।१४ १।२।३७,३८ १।२।१४ ११७१२२ १।१६।१५२ १७६ १।१६।१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज° असक्कारिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवड्ढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परिभंजेमाणी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणि?तराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहरामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहरह आइण्ण वेढो वृत्ति १।१६।५२ १।१६।३४ १६५७६ ११५७६ १।१६।३३ १२५७६ ११५७६ १।५।१२४ १।१८।१६ १।१८।१६ १।१।२०१ १११।९७१।१६।११ ११।११६ १११।२०१ १।५।११७,११८ वृत्ति १।१८।१६ १।१।१६८ १।१४ ११५।११५ १।१।१६८ १।८।४२ १।१११६ १।१२।१६ २।१२० १।१७।१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १।१२।१३ १।१।९५ वत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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