Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 889
________________ ११७।२५ १।१४।५३ श२।१६ १।१४।१६ १९४८ १।१६।५० १।१३।१५,१११४१५३ १।१६।९७ १।१४।३७ १७६ ११७१६ १२।१२ ११११८१ १।११ शश२० ११५।२० १।१४।३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि नाइ जाव आमंतेइ नाइ जाव नगरमहिलाओ नाइ जाव परियणं नाइ जाव परियणेण नाइ जाव परिवुडे नाइ जाव संपरिवुडे नामं वा जाव परिभोग नाम जाव परिभोग नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं निक्खेवओ निक्खेवओ अज्झयणस्स निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ दसमवग्गस्स निक्खेवओ पढमज्झयणस्स निक्खेवओ बिइयवग्गस्स निग्गंथा जाव पडिसुणेति । निग्गंथाणं जाव विहरित्तए निग्गंथी वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए निग्गंथे वा जाव पव्वइए निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पंचसु निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ निद्वियं जाव विज्झायं निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे नियग० निव्वत्तियनामधेज्जे जाव चाउदंते निव्वाघायंसि जाव परिवड्डइ निसंते जाव अब्भणु ण्णाया निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि निसीयइ जाव कुसलोदंतं श१।१२८ २।४।६ २।२।८ २।४।६ २।१०१७ २।३।८ २।२।१० श१६।२३ १।५।१२४ १।१८।६१ श७।२७,१११०१३;१।१२३,५ श२७६ १।१७।२५,३६ श१।१४ १।५।१२६ ११।१८४ १।१८।५४ ११७६ १११११६७ १।१६।३६ १।१४।५० आयारचूला १५।२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २।१२६३ २।११४५ २।१।६३ शश२६ १११११४ १।२।६८ १२।६८ १।२।६८ श२०६८ ११३।२४ ११२७६ २१११८३ ११।३२ ११११८१ १११११५६ राय० सू० ८०४ १११११०४ म ११८१८ १।१६।१६८ १६२८७ १।१६।१८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922