Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 900
________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिवुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवूडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगइया हय जाव सेणं हयमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहित्ता हयमहिय जाव पडिसेहिया हयमहिय जाव पडिसेहेइ यमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियत्ताए हिरणं जाव वइरं हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे० हीलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवंति होत्था जाव सेणियस्स रणो इट्ठा जाव विहर १।१।१६८ १।११५८ १।१६।२४८ १।१६।१३६ श१६।१५६ १।१६६ १।१६।३०३ १।१६।१७४ १।१६।१३८ १।८।१६२ १।१६।२८५ १।८।१६६;१।१६।२५६ १।१६।२८६ १।१८।४२ १।१८।२४ १।१८।४१ १११११६१ १।१।१२६ १।१३।३८ १।१७।१६ १।१७।१८ १।४।१८ १५।१२५ १।१६।११८ १।१६।११७ १।१।१५७ १।१।१५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ १।८।५७ १।१।६७ १।८।५७ ११८५७ ११।१५ १८५७ ११८।१६५ ११८।१६५ ११८।१६५ १८।१६५ १।८।१६५ ११८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १।१७।१६ १।१७।१४ १।३।२४ १।३।२४ १।६।११७ १।३।२४ शश१७ वृत्ति उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवण्णे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७।१७ ५।२,२१ ७।१० ३।२०,२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922