Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 880
________________ एवं पास थे कुसीले पमत्ते एवं मासा वि । नवरं इमं नाणत्तं -- मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालमासा य अत्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा - सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया । अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल ए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरs ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओहमण जाव भियायइ ओहमण संकष्पं जाव भियायमाणि ओह मणसंकप्पा ० ओह मणसंकप्पा जाव भियाइ ओह मणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओहमण संकप्पा जाव भियायह ओह मणसंकप्पा जाव भियायामि ओहमणसंकप्पा जाव भियाहि ओह मणसंकपे जाव भियामि ओह मणसंकप्पे जाव झियायइ ओह मणसंकप्पे जाव भियायमाणे ओह मणसं कप्पे जाव भियायसि कंडरीए उट्टाए उट्ठेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कंत्ता जाव भवेज्जामि कंते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कट्टु जाव पडिस हेइ कटुस्स य जाव भरेंति Jain Education International ७ १।५।११७ १।५।७५ १११८८ २|७|६ २८६ १।१६/२२५ १।५।१२५ १८१७१ १।३।२३ १|१४|३८; १ । १६।२०८ १।१४।३८ १।१।३४ १।१४।३७;१।१६।६२,८७,२०७ १/६/१५ १/८/१७३ १।१६।६५ १।१६।६४,६२,२०८ १।१७।१० १।८।१६८; १ । १४ । ७७; १।१७१८ १।१६/३२ १।१७/६ ११५/७३ भ० १८।२१५-२१६ १।१।१२ १।१६।६७ १।१।१४५ १।१।१६२ १७/४२ १।१६।२५५ १।१७।२८ For Private & Personal Use Only १।५।११७ १।१८८ २७/२ २२ १।१६।१६५ १।५।११७ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ वृत्ति १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।१०१ १११४।४३ १।१।१०६ वृत्ति १२५६० १।१६।२५१,२५२ १।१७/२२ www.jainelibrary.org

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