Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 855
________________ दसमं अज्झयणं अंजू उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° -एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्डमाणपुरे नामं नयरे होत्था। विजयवड्डमाणे उज्जाणे । माणिभद्दे जक्खे । विजयमित्ते राया ॥ ३. तत्थ णं धणदेवे नाम सत्थवाहे होत्था–अड्ढे । पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव' उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया ।। अंजूए पुव्वभवपुच्छा-पदं ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव' अडमाणे विजयमित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एगं इत्थियं-सुक्क भुक्खं निम्मंसं किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं नीलसाडगनियत्थं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूवमाणि पासइ, पासित्ता चिंता तहेव जाव' एवं वयासी-सा णं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? वागरणं॥ १. सं० पा०-दसमस्स उक्खेवरो। २. ना० ११११७। ३. वि० ११४.३६। ४. वि० १।४।११। ५. वि० ११२।१२-१४ । ६. नियच्छं (ख)। ७. विस्सराइं (ख, घ); विसराइं (ग); ८. वि० ११२।१५।। ६. पू०-वि० ११२।१६ । ७६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922