Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 853
________________ विवागसुयं ५१. [तं जहा-उसिणोदएणं 'सीओदएणं गंधोदएणं'"] विउलं असणं पाणं खाइम साइमं भोयावेइ, भोयावेत्ता सिरोए देवीए ण्हायाए' 'कयबलिकम्माए कयकोउयमंगल ° -पायच्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तओ पच्छा हाइ वा भुंजइ वा, उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ।। तए णं तोसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणोए इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु पूसनंदो राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाव' विहरइ । तं एएणं वक्खेवेणं नो संचाएमि अहं पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाइं भजमाणी विहरित्तए। तं सेयं खल मम सिरिदेवि अग्गिपयोगेण वा सत्थप्पयोगेण वा विसप्पनोगेण वा" जीवियानो ववरोवेत्ता पसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाइं माणस्सगाई भोगभोगाइं भंजमाणोए विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरइ ।। ५२. तए णं सा सिरी देवो अण्णया कयाइ मज्जाइया विरहियसयणिज्जसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था । ५३. इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरि देवि मज्जाइयं विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोहदंडं परामुसइ, परामसित्ता लोहदंडं तावेइ, तत्तं समजोइभयं फूल्लकिसूयसमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए प्रवाणंसि पक्खिवइ । ५४. तए णं सा सिरी देवी महया-महया सद्देणं प्रारसित्ता कालधम्मुणा संजुत्ता। ५५. तए णं तोसे सिरोए देवोए दासचेडोयो प्रारसियसई सोच्चा निसम्म जेणेव सिरी देवो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता देवदत्त देवि तो प्रवक्कममाणि पासंति, पासित्ता जेणेव सिरी देवो तेणव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिरि देवि निप्पाणं निच्चेटुं जोवियविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा ! अहो ! अकज्ज १. गंधोदएणं सीओदएण (क, ग); कोष्ठकवर्ती ६. पडिजागरमाणा (क, ग)। पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. मज्जातीता (क); मज्जावीता (घ)। २. सं० पा०-हायाए जाव पायच्छित्ताए। ८. तए णं तं (क, ख)। ३. वि० १।६।५०। ६. पुप्फकिंसुय° (ग)। ४. सिरिदेवी (क, ख, ग, घ)। १०. पक्खिवेइ (ख, ग)। ५. वा मंतपओगेण वा (घ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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