Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 842
________________ अट्ठमं अज्झयणं (सोरियदत्ते) ७८५ १८. तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे। १६. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि' एगट्ठियाहिं जउणं महाणइं प्रोगाहेति, प्रोगाहेत्ता बहूहिं दहगलणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणे हि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य' 'पयंचुलेहि य" 'पंचपुलेहि य जंभाहि य' 'तिसराहि य भिसराहि य' घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य 'भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य" झिल्लिरीहि य जालेहि य गले हि य कूडपासेहि य 'वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य" बालबंधहिय बहवे सहमच्छे जाव पडागाइपडागे य गेण्हति एगट्रियाओ"भरति, भरेत्ता कूलं गाहेंति,गाहेत्ता मच्छखलए" करेंति,करेत्ता प्रायवंसि दलयंति । अण्ण य से बहवे रिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा प्रायव-तत्तएहि मच्छेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि णं से सोरियदत्ते बहूहि सोहमच्छेहि य जाव पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ ।। २०. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अण्णया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भज्जिए य आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था । २१. तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे कोडं बियपूरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोरियपूरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह° पहेसु य महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे। तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुनो वा जाण्यपुत्तो वा तेगिच्छियो वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियदत्तस्स मच्छियस्स १. वि० २११४७। ६. तिसिराहि य भिसिराहि य (ग)। २. कल्लंकल्लं (घ)। ७. X (क, ख, घ)। ३. X (क, ख, ग)। ८. णक्खबंधेहि य (ग); णक्खबंधेहि य ४. पर्यधुलेहि य (ख); X (ग)। वक्कबंधेहि य बालबंधेहि य (घ)। ५. पंचपुलेहि य बम्भारिएहिं य (क); पंचपुलेहि ६. पण्ण ° पद° १। य जम्भाहि य (ख); पंचन्नलेहि य बम्भाहि १०. एगट्ठियं (क, ख, ग)। य (ग); प्रपंचपुलादयः मत्स्यबंधनविशेषाः ११. मच्छक्खलए (क, ख)। (मु० वृ); प्रपंचुलादयः ० (ह० वृ); १२. मच्छंधियस्स (क, ख, ग, घ)। बंधुंलादयः ° (ह० वृ)। १३. सं० पा-सिंघाडग जाव पहेसु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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