Book Title: Anekant 1948 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 4
________________ जीरापल्ली - पार्श्वनाथ - स्तोत्र [यह वही कानपुरके बड़े मन्दिरसे प्राप्त हुआ स्तोत्र है, जिसकी सूचना अक्तूबर सन् १९४७ की अनेकान्त किरण १२में, 'रावण पार्श्वनाथ स्तोत्र' को देते हुए, की गई थी और जो प्रभाचन्द्र शिष्य पद्मनन्दीकी कृति होनेसे पूर्वानुमान के अनुसार श्राजसे कोई ५५० वर्ष पहलेका बना हुआ होना चाहिये । इस स्तोत्रका सम्बन्ध उन श्रीपार्श्वनाथसे है जो जीरापल्ली स्थित देवालयके मूलनायक थे और जिनके कारण वह स्थान सुशोभित था— अतिशय क्षेत्र बना हुआ था । मालूम नहीं यह जीरापल्ली स्थान कहाँपर है और वहाँपर अब भी उक्त देवालय पूर्ववत् स्थित है या नहीं, इसकी खोज होनी चाहिये । - सम्पादक ] Jain Education International · ( रथोद्धता ) नमस्त्रिदश- मौलि-सन्मणि- स्फार - रश्मि - विकचांहि-पङ्कजम् । पार्श्वनाथमखिलाऽर्थ - सिद्धये तोष्टुवीमि भव-ताप- शान्तये ॥१॥ वाग्मयेन महता महीयसा तावकेन जिननाथ जन्मिनाम् । आन्तरं यदि तमः प्रसृत्वरं नाशमेति तदिदं किमद्भुतम् ||२|| काम - चण्डिम- भिदेलिम प्रभं कः क्षमोऽत्र तव रूपमीडितुम् । वासवोऽपि यदि सेक्षणेच्छया चक्षुषां किल सहस्रतामितः ||३|| दर्शनाद्यदपहंसि कल्मषं केयमीश भवतोऽधिका स्तुतिः । ध्वान्त[ मस्त ]मरुणोदयादिदं याचिचेदिह किमद्भुतं सताम् ||४|| नाथ तत्र भवतः प्रभावतो यो गुणौघ गणनां चिति । पूर्वमब्धि-पयसोऽञ्जलि-व्रजैः स प्रमाणममतिस्तनोत्वलम् ||५|| दुस्तरेऽत्र भव-सागरे सतां कर्म- चण्डिम-भरान्निमज्जताम् । प्रास्फुरीति न कराऽवलम्बने त्वत्परो जिनवरोऽपि भूले ||६|| त्वत्पदाम्बुज-युगाऽऽश्रयादिदं पुष्यमेति जगतोऽवतां सताम् । स्पृश्यतामपि न चाऽन्यशीर्षगं तव ( त्वत् ) समोऽत्र तवको निगद्यते ॥७॥ नाशयन्ति `करि-सिंह- शूकर- व्याघ्र- चौर-निकरोरगादयः ॥ कदाचिदपि नो मनोगृहे पार्श्वनाथजिन यस्य शुभसे ||८|| (शालिनी) जीरापल्ली-मण्डनं पार्श्वनाथं नत्वा स्तौति भव्य-भावेन भव्यः । यस्तं नूनं ढौकते नो वियोगः कान्तोद्भूतश्चाऽप्यनिष्टश्च (स्य ) योगः || || ( वसन्ततिलका) श्रीमत्प्रभेन्दु- चरणाऽम्बुज- युग्म - भृङ्गश्चारित्र-निर्मल मतिर्मुनिपद्मनन्दी । पार्श्वप्रभोर्विनय-निर्भर - चित्तवृत्तिर्भक्तथा स्तवं रचितवान्मुनिपद्मनन्दी ||१०|| इति श्रीपद्मनन्दि - विरचितं जीरापल्ली-पार्श्वनाथ - स्तोत्रं समाप्तम् । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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