Book Title: Anekant 1948 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 25
________________ किरण ७ ]. वैशाली-(एक समस्या) २६७ संसार क्षणिक सुखका स्वप्न भासित होने लगता है। आचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरिजी कृत "वैशाली" का कभी आपने सोचा है ऐसा क्रान्तिकारी परिवर्तन क्यों अध्ययन करें। आपने इसमें गम्भीरताके साथ होजाता है ? तीर्थस्थानोंकी महिमाका यही बहुत बड़ा विश्लेषण किया है। . प्रभाव है। बहुतोंके जीवनमें ऐसे अनुभव अवश्य ही पुरातत्त्वाचार्य श्रीमान् जिनविजयजी, डॉ. हुए होंगे। मैं तो जब कभी प्राचीन तीर्थस्थान या याकोबी और डॉ. हॉर्नलेने बहुत समय पूर्व जैन खण्डहरोंमें पैर रखता हूं तब अवश्य ही ऐसे क्षणिक समाजका ध्यान इस वैशाली की ओर आकृष्ट किया आनन्दकी घड़ियोंका अनुभव करता हूं। अतः हमारी था पर तब बात संदिग्ध थी, किन्तु गत चार वर्षांसे संस्कृतिके जीवित प्रतीकसम प्राचीन तीर्थस्थानों की तो इस आन्दोलनको बड़ा महत्त्व दिया जारहा है। रक्षाका प्रश्न अविलम्ब हाथमें लेने योग्य है । ऐसे गत वर्ष स्टेटसमैनसे श्रीयुत जगदीशचन्द्र माथुर I. C. S. स्थानोंमें वशालीकी भी परिगणना सरलतासे की जा ने इस ओर जैनोंको फिर खींचा और बतलाया कि सकती है । जैनसाहित्यमें इसका स्थान बहुत गौरव वैशाली भगवान महावीरका जन्म स्थान होनेके कारण पूर्ण है । ई० स० पूर्व छठवीं शतीमें यह जैनसंस्कृति उनका एक विशाल स्तम्भ वा स्टेच्यु वहाँ प्रस्थापित का बहुत बड़ा केन्द्र था, उन दिनों न जाने वहाँ की किया जाना चाहिये जिससे स्मृति सदाके लिये बनी उन्नति कितनो रही होगी. श्रमण भगवान महावीर रहे। आप ही के प्रयत्नोंसे वहाँपर “वैशाली संघ" स्वामीजीकी जन्मभूमि होनेका सौभाग्य भी अब इसे की स्थापना हुई जिसका प्रधान उद्देश्य पत्र विधान प्राप्त होने जारहा है। आचाराङ्ग और पवित्र कल्प- और चतुर्थ वार्षिकोत्सव का मेरे सम्मुख है । संघका सूत्रादि जैनसाहित्यके प्रधान ग्रन्थोंसे भी प्रमाणित प्रधान कार्य इस प्रकार बँटा हुअा है- वैशालीके हुआ है । गणतंत्रात्मक राज्यशासन पद्धतिका यहींपर प्राचीन इतिहास और संस्कृति तथा इसके द्वारा उपपरिपूर्ण विकास हुआ था, जिसकी दुहाई आजके स्थित किये गये प्रजा-सत्तात्मक आदर्शोंमें लोकरुचि युगमें भी दी जारही है । तात्कालिक भगवान महावीर जागृत करना, वैशालीके और उसके समीपके पुरातत्त्व दीक्षित होनेके बाद जिन-जिन नगरोंमें विचरण करते सम्बन्धी स्थानोंकी खुदाईके लिये उद्योग करना और थे उनकी अवस्थिति आज भी नामोंके परिवर्तनके उनके संरक्षणमें सहायता देना" इनके अतिरिक्त साथ विद्यमान है । कुमार ग्राम, मोराकसन्निवेश वैशालीका प्रामाणिक इतिहास और वहाँपर पल्लवित आदि-आदि । यों तो वर्तमानमें लछवाड और कुंडल- पुष्पित संस्कृतिके गौरव पूर्ण अवशेषोंकी रक्षा एवं उन पुर श्वेताम्बर-दिगम्बर सम्प्रदायोंके द्वारा क्रमशः जन्म परसे जागृति प्राप्त कर हर उपायोंसे प्राचीन आदर्श, स्थान माने जाते हैं पर वे मेरे ध्यानसे स्थापना तीर्थ का जो यहाँ पूर्वमें थे-पुनरुज्जीवन, पुस्तकालयों रहे होंगे। क्योंकि गत ४ सौ वर्षोंसे ही या इससे कुछ वाचनालय, ग्रामीणोंकी सांस्कृतिक दृष्टिसे उन्नति अधिक कालके उल्लेख ही लछपाइकी पुष्टि करते हैं आदि कार्य हैं। भारतवर्षमें योजनाएँ तो सर्वांगपूर्ण बादमें श्वेताम्बरोंने इसे जन्म स्थान मान बनती है पर किसी एक आवश्यक अङ्गपर भी समुलिया हो। इन उभय स्थानोंकी यात्रा करनेका सौभाग्य चित रूपेण कार्य नहीं होता। केवल प्रतिवर्ष एक मुझे इसी वर्ष प्राप्त हुआ है। परन्तु उभय स्थानोंकी शानदार जल्सा होजाता है, लोग लम्बे-लम्बे व्याख्यान वर्तमान स्थितिको देखते हुए यह मानना कठिन-सा दे डालते हैं। अप-टू-डेट निमन्त्रण पत्र छपते हैं। प्रतीत होरहा है कि वहाँपर भगवान महावीरका जन्म चार दिनकी चहल-पहलके बाद “वही रफ्तार बेढङ्गी" हुआ होगा; ऐतिहासिक और भौगोलिक स्थिति इससे आश्चर्य इस बातका है कि कभी-कभी सभापति ही संगति नहीं रखती । इस विषयपर अधिक रुचि रखने वार्षिक उत्सवसे गायब । किसी भी ठोस कार्य करने वाले महानुभावोंसे मैं निवेदन कर देना चाहूँगा कि वे सांस्कृतिक संस्थाके लिये इस प्रकारकी कार्य पद्धति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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