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अनेकान्त
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उन्नति मूलक नहीं मानी जा सकती। कौंसिल भी बनाना यह बात कुछ स्वार्थ प्रेरित तत्त्वोंकी सूचना इतनी लम्बी जैसा कोई लम्बा और मोटा अजगर हो:- देती है। मन्दिर नहीं बनाना तो जैनोंको बार-बार ___ १ सभापति, ११ उपसभापति, ४ मन्त्री, १ प्रोत्साहित ही क्यों किया जाता है ? मैं तो चाहूँगा कि कोषाध्यक्ष, ४१ सदस्य । इस चुनावकी परिपाटी भी वहाँ मन्दिर जरूर बने पर वह लम्बा चौड़ा न बनकर बिल्कुल असन्तोषजनक है। अधिकांश व्यक्ति एक एक ऐसा सुन्दर और कलापूर्ण निर्मित हो जिसमें डिवीजनके हैं या प्रान्तके हैं। इनमेंसे बहुत ही कम मागधीय शिल्प स्थापत्य कलाके प्रधान सभी तत्त्वों ऐसे व्यक्ति हैं जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता और का समीकरण हो, प्राचीन शिल्पकी ही अनुकृति हो, तन्मूलक गवेषणासे अभिरुचि रखते हों या उनका इस दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंका संयुक्त मन्दिर दिशामें कुछ ठोस कार्य हो। इसके मन्त्रीजीसे मैंने होना चाहिये। सङ्गठनका यही आदर्श है। अब तो सदस्योंकी लम्बी सूचीपर कुछ कहा वे कहने लगे कि समय आगया है दोनों मिलकर जैन संस्कृतिका अनुक्या करें कुछ लोगोंको प्रथम.हमने न रक्खा तो उनने ष्ठान करें। दोनों समाजोंने मँझटें खड़ीकर संस्कृतिको संघके विरुद्ध प्रचारकर दिया, अतः उनको रख लिया विकृतिके रूपमें परिणितकर दिया है। अच्छा हो • ऐसी प्रणालिका रहेगी तो मैं तो कहूँगा कि वहाँपर वैशालीसे ही इस सङ्गठन और असाम्प्रदायिक भावों
कुछ भी कार्य होने की सम्भावना नहीं है, भले ही का विकास-प्रचार हो । वाचनालय बनाना यह तो वर्तमान पत्रोंमें सुन्दरसे सुन्दर रिपोर्ट छप जाय । दर सर्वथा उपयुक्त है ही। असल होना तो यह चाहिये था कि सदस्यताका एक मेरे पास कुछ पत्र आये हैं कि वैशालीमें यदि हिस्सा उन लोगोंके लिये छोड़ दिया जाता, जो इतिहास मन्दिर निर्मित हो तो पैसे कहाँ भेजे जायें ? मैं स्पष्ट पुरातत्त्व आदि संशोधनके विषयोंसे रात दिन सर राय तो यही दूंगा कि जब तक एक समिति नियुक्त पचाते रहते हैं भले ही वे इतर प्रान्तोंके ही क्यों न नहीं हाजाती-जिसमें विश्वसनीय समाजसेवी कार्यहों। डॉ० निहाररञ्जनराय, डॉ कालीदास नाग, डॉ. कर्ता हों-तब तक रुपये कहींपर भी न भेजें। और सुनीतिकुमार चटर्जी, डॉ० आर० सी० मजूमदार, सावधानीसे काम लें; एक० यक्तिके भरोसेपर विश्वास डॉ० भाँडारकर, डॉ ताराचन्द (पटना) .भट्टाचार्य, कर आर्थिक सहायता भेजना कभी-कभी बुरा नतीजा डॉ. अल्तेकर, पी० के गोड M. A., डॉ. हँसमुख मोल ले लेना है। खेदकी बात तो यह है कि पटना. सांकलिया आदि महानुभावोंका रहना अनिवार्य है बिहार आदिके जैन गृहस्थों की भी इस काममें कोई जो खनन और पुरातत्त्व तथा इतिहासकी शाखाओंके खास सामूहिक रुचि नहीं है. । मैं पटनासे ही इन विद्वान हैं। ११ जैनोंको भी शामिल कर लिया है। पंक्तियोंको लिख रहा हूँ। 'मुझे कहना होगा कि कुछ और जैन श्रीमन्तोंके साथ अन्तमें मैं यह सूचित कर देना अपना परम विद्वानोंको भी रखना चाहिये, यदि सांस्कृतिक विकास कर्त्तव्य समझता हूँ कि वैशाली संघके कार्यकर्ता का प्रश्न है तो।
अपनी कार्य प्रणाली और सदस्योंके चुनावमें बुद्धिचतुर्थ अधिवेशनमें प्रस्ताव पास किये गये हैं उन मानीसे काम लें तो भविष्यमें बिहारका सांस्कृतिक में एक जैन मन्दिर बनवानेका भी है, मन्दिर जैनीही महत्त्व बढ़ेगा और वैशाली भी विगत गौरवको प्राप्त अपने रुपयोंसे बनवायें । परन्तु संघके वर्तमान कर आर्यसंस्कृतिको अभूतपूर्व विकास केन्द्रका स्थान कोषाध्यक्ष श्रीमान् कमलसिंहजी बदलियाने मुझे ता० ग्रहण कर सकेगी। ४-७-४८ को बताया कि हमें वहाँपर जन मन्दिर १ सर्वप्रथम संघवालोंका परम कर्तव्य यह होना चाहिये निर्माण नहीं करवाना; परन्तु लायब्रेरी बनाना है। जब कि जैनसमाजमें वैसा वायुमण्डल तैयार करें कमसे कम महावीरकी स्मृति कायम रखना है और मन्दिर नहीं वैशालीके नजदीकके जैनोंको तो प्रोत्साहित करें ही।
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