Book Title: Anekant 1948 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 33
________________ मुरारमें वीरशासन - जयन्तीका महत्वपूर्ण उत्सव इस वर्ष वीरसेवामन्दिर, सरसावा द्वारा आयोजित वीर-शासन- जयन्तीका महत्वपूर्ण उत्सव श्री क्षुल्लक पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्यकी अध्यक्षता में श्रावण कृष्णा १, २ ता० २२, २३ जुलाई १९४८, बृहस्पतिवार, शुक्रवारको मुरार (ग्वालियर) में सेठ गुलाबचन्द गणेशीलालजी जैन रईस मुरारके विशाल उद्यानमें बड़े समारोह के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ । उत्सवमें भाग लेनेके लिये वन्दनीय त्यागीवर्ग के अलावा विविध स्थानोंसे अनेक प्रमुख विद्वान् और श्रीमान् पधारे थे । विद्वानोंमें पं० जुगल किशोरजी मुख्तार अधिष्ठाता, वीरसेवामन्दिर सरसावा, पंडित राजेन्द्रकुमारजी न्यायतीर्थ मथुरा, पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री बनारस, पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री बनारस, पं० दयाचन्द्रजी शास्त्री सागर, पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य बीना, पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर, पं० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य सरसावा, प्रोफेसर पन्नालालजी बनारस, पं० परमेष्ठीदासजी न्याय तीर्थ ललितपुर, पं० परमानन्दजी शास्त्री सरसावा, बा० अयोध्याप्रसादजी गोयलीय डालमियानगर, 'बा० ज्ञानचन्द्रजी जैन कोटा, मास्टर शिवरामजी रोहतक, आदिके नाम उल्लेखनीय हैं और श्रीमानोंमें लाला महावीरप्रसादजी ठेकेदार देहली, ला० स्तनलालजी मादीपुरिया देहली, ला० राजकृष्णजी देहली, रायबहादुर बा० उल्फतरायजी देहली, ला० मक्खनलालजी ठेकेदार देहली, बा० महताबसिंहजी सर्राफ देहली, बा० पन्नालालजी अग्रवाल देहली, बा० नन्दलालजी कलकत्ता (बा० छोटेलालजी जैन कलकत्ताके लघुभ्राता), ला० चतरसेनजी सरधना, ला० त्रिलोकचन्दजी खतौली, ला० हुकुमचन्दजी सलावा आदिके नाम उल्लेख योग्य हैं। ग्वालियर, लश्कर, भिंड, मोरेना, जबलपुर आदिके भी कितने ही सज्जन उत्सवमें सम्मिलित हुए थे। त्यागीवर्ग भी Jain Education International कम नहीं था, श्री क्षुल्लक पूर्णसागरजी, श्री क्षुल्लक विशालकीर्तिजी, ब्र० चिदानन्दजी, क्र० सुमेरुचन्दजी भगत, क्र० कस्तूरचन्दजी नायक, ब्र० मूलशङ्करजी आदि वन्दनीय त्यागी मण्डलसे उत्सव विशेष शोभनीय था । श्रीमती विदुषीरत्न पं० ० सुमतिबाईजी न्याय-काव्यतीर्थ सोलापुर जैसी महिलाएँ भी अपनी समाजके प्रतिनिधित्व की कमीको दूर करती हुई उत्सव में शामिल हुई थीं । T यद्यपि २१ और २२ जुलाईको लगातार वर्षा होती रही और वर्षा होते रहनेसे प्रभातफेरी नहीं हो सकी, पर झण्डाभिवादन बड़े भारी जनसमूह के मध्यमें कुछ बूँदा बाँदीकें होते हुए भी अपूर्व उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। पूज्य वर्गीजीने झण्डा फहराते हुए कहा कि इसी प्रकार वीरके शासनको ऊँचा रखें - अपने आचरण द्वारा उसे उच्च बनायें और वीर जैसे वीतरागी वीर - विश्वकल्याण कर्ता बनें । दोपहरको श्री क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णीकी अध्यक्षतामें जल्सा प्रारम्भ हुआ । पं० परमेष्ठीदासजीने मङ्गलाचरण किया । इसके बाद बा० हीरालालजी मुरारका स्वागत भाषण हुआ, जिसमें आपने आगन्तुक सज्जनोंका स्वागत करते हुए कष्टके लिए क्षमायाचना की। इसके अनन्तर अध्यक्षजीका महत्वका मुद्रित भाषण हुआ, जिसे लाउडस्पीकरके काम न देनेके कारण पं० चन्द्रमौलिजीने पढ़कर सुनाया और जो अनेकान्तमें अन्यत्र प्रकाशित हो रहा है। पं० दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्यने बाहर से आये सन्देशों और शुभकामनाओं को सुनाया। साथ ही वीरसेवामन्दिरके अब तकके अनुसंधान, साहित्य और इतिहास निर्माण सम्बन्धी महत्वपूर्ण कार्योंका संक्षेपमें परिचय दिया । संदेश और शुभकामनाएँ भेजनेवालों में भारत के प्रधानमन्त्री पं जवाहरलाल नेहरू, सर सेठ हुकुमचन्दजी इन्दौर, सर सेठ भागचन्द For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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