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आनन्द प्रवचन भाग ६
जाए ? कौन सा फूल खिल रहा है ? कौन-सी में टूट रही है ? उसी माली का बाग सुवासपूर्ण सुन्दर, पुष्पित, फलित एवं हराभरा रहता है। आसपास का वातावरण भी रहता है। इतना सब ध्यान में रखकर यदि फाड़ माली वाटिका में केवल फल ही ढूँढता रहे या किसी आकर्षक फूल के पास ही बैठा रहे तो सारी वाटिका अव्यवस्थित हो जाएगी। फल भी उसे कहाँ से मिलेंगे, जबोके वह वाटिका की सुरक्षा का पूरा प्रबन्ध नहीं करेगा ? पौधे मुरझा जाएँगे, फूल। सूख जाएँगे, न हरियाली रहेगी न सुवास । पतझड़ की तरह सारा वातावरण शुष्क, नीरस एवं निर्जीव-सा लगेगा।
यही बात जीवनवाटिका के विषय में समझिए । जीवनवाटिका का माली यदि बाहोश और कुशल न होगा, वह सद्भावों के सुन्दर बीच बोकर सत्कार्य रूपी पौधे नहीं उगाएगा, सदाचाररूपी खाद नहीं देगा, चरित्रष्टि की सिंचाई नहीं करेगा तो कीर्ति रूपी फल और यशरूपी पुष्प उसे कैसे प्राप्त हंगो ? यदि वह जीवनवाटिका की रक्षा काम-क्रोध, कुशील, अनाचार आदि से नहीं करेगा तो उसकी वाटिका कीर्तिरूपी फलों एवं यशःपुष्पों से हरीभरी कैसे रहेगी ? इसीलिए कीर्तिरूपी फलों की प्राप्ति के लिए जीवनवाटिका की सब ओर से सुरक्षा का ध्यान रखना आवश्यक है।
कीर्ति यों सुरक्षित रहती है।
मनुष्य सावधानी रखे तो अपनी जीती कीर्ति को सुरक्षित रख सकता है। इस सम्बन्ध में मुझे न्यायशील बादशाह नौशेरवाँ के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना याद आ रही है। फारस के बादशाह न्यायी नौशेरवाँ ने एक बड़ा महल बनवाया था और उसमें बड़ा सुन्दर बाग भी लगवाया था। उन्हीं दिने रूमदेश का एक राजदूत फारस आया। उसने बादशाह के महल और बाग को देखने क। इच्छा प्रगट की। एक फारसी सरदार उसे दिखलाने ले गया। राजदूत महल और बाग देखकर बहुत प्रसन्न हो रहा था, और प्रशंसा कर रहा था, तभी उसकी दृष्टि उस सुन्दर बाग कि एक कोने पर खड़ी एक अत्यन्त गन्दी झोंपड़ी पर पड़ी, जिसने बाग के सुन्दर आकार-प्रकार को बिगाड़ रखा था। राजदूत को बड़ा दुःख हुआ। उसने सरदार से पूछा - "इत सुन्दर बाग के कोने पर यह गंदी झौंपड़ी क्यों खड़ी कर रखी है, जो बाग की शोभा बिगाड़ती है ?"
सरदार ने कहा -" इस झौंपड़ी ने हमारे बादशाह की न्यायप्रियता और दयालुता के गुणों के कारण प्राप्त हुई कीर्ति को सुरक्षित कर रखा है। अतः यह झौंपड़ी हमारे बादशाह की उज्जवल कीर्ति की प्रतीक है।"
राजदूत ने यह जानने की उत्सुकता ! नगट की तो सरदार ने बताया -- बादशाह नौशेरवाँ जिस समय यह बाग लगवा रहे थे, जो उसके नक्शे में यह झौंपड़ी पड़ी। झौंपड़ी एक बुढ़िया की थी। बादशाह ने उस बुढ़िया को बुलाकर समझाया -- यह झौंपड़ी मुझे दे दे, तू जो चाहे, सो मोल इसका ले ले। मेरे बाग का नक्शा सही हो जाएगा ।
लेकिन वह बुढ़िया किसी भी मूल्य पर तैयार न हुई। उसने बादशाह से कहा- तू बादशाह है। तेरे पास लम्बा-चौड़ा देश है, जहाँ चाहे बाग लगवा ले, पर