Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 388
________________ विप्तचित्त कोकहना विलाप ३८१ अस्थिरता और अन्धानुकरण से बचाना है तो संकल्पपूर्वक किसी विशेष लक्ष्य की पूर्ति में लगा देना होगा। ऐसा करने से समुद्री ज्वार भाटे की तरह चित्त में ऐसी शक्ति भर जाती है कि कठिन दिखाई देने वाले कार्य भी आसानी से पूरे हो जाते हैं। अतः चित्त में उठने वाली चिन्तन तरंगों को स्वेच्छापूर्वक विचरण न करने देकर अच्छे विचारों में उसकी रुचि जगा देना और सतत अभ्यास कराना आवश्यक है। अन्यथा चित्त कुविचारों में रस लेता रहा तो स्वेच्छाधारी और कुस्वभाव का बन जाएगा। सौ बातकी एक बात है कि चित्त को विक्षिप्त होने से बचाने के लिए आप उसे एक शुभविचार में केन्द्रित करने का प्रयत्न कीजिए। हमारे शास्त्रों में वर्णन आता है.'' एकपोग्गल निविट्ठदिट्ठिए' अर्थात् साधन्त एकपुद्गल में अपनी दृष्टि जमा लेता है। इसका मतलब है, चित्त को एकाग्र करने के लिए एक ही सत्कार्य, एक ही शुद्धविचार, एक ही किसी बात या वस्तु में अपने चित्त को संलग्न करने का अभ्यास करना चाहिए। विक्षिप्त चित्त: उपदेश के लिए कुपात्र यही कारण है कि महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र द्वारा बता दिया कि विक्षिप्त चित्त वाले व्यक्ति का कोई भी उपदेश या हिताकर बात कहना विलापतुल्य है। बात यह है कि जिसका चित्त विक्षिप्त होता है, वह उपदेश का पात्र नहीं होता। जैसे चलनी में जो भी कुछ डाला जाता है, वह बाहर निकल जाता है। विक्षिप्तचित्त का दिमाग चलनी के समान उपदेशरूपी पदार्थ ती ग्रहण नहीं कर पाता। इसलिए वह उपदेश के लिए कुपात्र है, अयोग्य पात्र है। जो कुपात्र होता है उसे ज्ञान, विवेक, भक्ति, श्रद्धा या बोध कोई भी समझदार पुरुष नहीं देता । एक परमात्मभक्तथा- रब्बी जोसे बेक। उसने एक बार एक महिला से कहा—' परमात्मा ज्ञान, विवेक, शक्ति और शान्ति सत्पात्र को देता है, अज्ञ और अन्धकार में डूबे हुओं को नहीं। " इस पर वह महिला बड़ी नाराज हुई और बोली “इसमें परमात्मा की क्या विशेषता रही ? होना तो यह चाहिए था कि असभ्य व्यक्तियों को वह यह सब देता है, तो उससे संसार में अच्छाई का विकास तो होता । " रब्बी उस समय चुप हो गए। बात जहां की तहां स्थगित कर दी। दूसरे दिन सुबह उन्होंने मुहल्ले के एक मूर्ख व्यक्ति को शूलाकर कहा - "अमुक महिला से जाकर आभूषण मांग लाओ।" मूर्ख वहां गया और आभूषण मांगे तो उसने न केवल आभूषण देने से इन्कार किया, अपितु उसे झिड़ककर वहां से भगा दिया। थोड़ी देर बाद रब्बी जोसे स्वयं महिला के यहां पहुंचे और बोले---" आप एक दिन के लिए अपने आभूषण दे दें, आवश्यक काम होते ही लौटा दूंगा।"

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