Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 414
________________ कुशिष्यों को बहुत कहना भी विलाप लगा। तत्पश्चात् वे सब वहां से बिहार करके एक दिन गुरुजी के पास पहुंचे। सागराचार्य भी पहले तो अपने दादागुरु वतलिकाचार्य को पहचान न सके, इसलिए अवज्ञा एवं उपेक्षा की। पर बाद में पता लगा तो उनसे क्षमा-याचना की। ४०७ बन्धुओ ! अनेक कुशिष्य भी गुरु के लिए सिरदर्द होते हैं फिर उन्हें हित- शिक्षा देना तो बहुत ही दुष्कर है, कोरा प्रलाप है। इसीलिए महर्षि गौतम ने चेतावनी दी हैं— 'बहू कुसीसे कहिए विलोवो' *

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