Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 395
________________ ३८८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ संसार में क्या धरा है ? स्त्री तो 'नरक की खा' है। त्रियों के संग से कभी किसी का कल्याण होने वाला नहीं। वे तो मायाविनी होती हैं। इसलिए मैं संसार और स्त्री का त्यागकर आत्मकल्याण करना चाहता हूँ।" इस पर संतोजी बोले-- "तुम्हारी यात ती ठीक है, लेकिन यह अत्यन्त कठिन मार्ग है. पाश्ने भली-भाँति सोच लो।" ब्राह्मण बोला- 'मैंने सोच लिया है। चाहे जितना कठिन हो, मैं उसी पर चलूँगा।" तब सन्तोजी ने कहा--- "जैसी तुम्हारी इच्छा। जाओ, ये कपड़े नदी में फेंक आओ और एक लंगोटी लगा लो।" ब्राह्मण आवेश में था। इसलिए तुरन्त कपड़े उतारकर नदी में फेंक दिये और लंगोटी लगाकर संतोजी के पास आया । सन्तानी ने कहा--"शरीर पर भस्म लगा लो और बैठकर रामनाम का जाप करो।" ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, त्यों-त्यों उसे भूख सताने लगी। भूख से व्याकुल होकर वह संतानी के पास आकर बोला-"महाराज ! भूख लगी है, क्या करूँ ?" सन्तोजी बोले-'बात तो ठीक है। समय हो गया है, इसलिए क्षुधा तो लगेगी ही। जाओ, सामने ये पेड़ दिखाई दे रहे हैं, इनकी पत्तियाँ तोड़ लो और वाँटकर ले आओ।" जब वह पत्तियाँ बाँटकर एक बड़ा गोका बनाकर ले आया, तब उसमें से आधा गोला उसे खाने को दे दिया और आधा स्वयं ने खा लिया। ब्राह्मण को भूख तो बहुत थी, लेकिन उसने कभी पत्तियां खाई नहीं थी, इसलिए उससे कड़वी पत्तियाँ न खाई गईं। अब उसका वैराग्य धीरे-धीरे छूमन्तर चिने लगा। पर अब घर जाने में भी उसे शर्म लगती थी। ज्यों ज्यों रात बढ़ने लगी, मुख के साथ ठण्ड भी सताने लगी। वह सन्तोजी के पास आकर कहा--''महाराज ! ऽण्ढ सता रही है, क्या करूँ ?" सन्तोजी ने कहा--"मेरे पास तो कण्ड़े नहीं हैं। ज्यादा ठण्ड लगती हो तो लकड़ी जलाकर ताप लो।" वह थोड़ी देर ती तापता रहा, लेकिन रात बढ़ने के साथ ही उसकी भूख और ठण्ड बढ़ती गई। उसका वैराग्य बिलकुल उड़ गया। वह बोला--"महाराज ! अव तो घर जाना चाहता हूँ।" सन्तोजी बोले-'क्या कहा ? घर काना चाहते हो ? अरेरे ! यह क्या कह रहे हो? तुम्हीं तो बता रहे थे कि संसार अपार है, और नारी नरक की खान है। तब उसके संग कैसे रहोगे?" वह बोला- 'महाराज ! बात तो सही है, लेकिन यह मेरे वश की बात नहीं है। यह तो आप जैसे सन्तों का ही काम है। मुझे आज्ञा दीजिए, मैं घर जाता हूँ।" लंगोटी लगाकर घर जाने में शर्म तो आ रही थी, लेकिन आधी रात बीत जाने से अब कोई डर नहीं था। गाँव के चारों ओर अँधेरा था, लोग निद्राधीन थे। अतः लंगोटी पहने ही वह घर पहुंचा। द्वार खटखषया । पत्नी ने पूछा- कौन है ? ब्राह्मण ने अपना नाम बताया। वह जोली-'मेरे पति ऐसे नहीं हो सकते कि

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